छत्तीसगढ़ की कृषि भूमि व फसलों पर एक नजर
भारतीय संघ के 26वें राज्य के रूप में 01 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। छत्तीसगढ़ की औसत वार्षिक वर्षा 1207 मि.मी. है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 138 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से फसल उत्पादन का निरा क्षेत्र 46.51 लाख हेक्टेयर है, जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 34% है। राज्य के लगभग 57% क्षेत्र में मध्यम से हल्की भूमि है। भारत के सबसे सम्पन्न जैव विविध क्षेत्रों में से छत्तीसगढ़ एक है, जिसका लगभग 63.40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वनाच्छादित है, जो कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 46% है। राज्य की कुल जनसंख्या में से लगभग 70% जनसंख्या कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं। 80 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी के कृषक है। धान, सोयाबीन, उड़द एवं अरहर खरीफ की मुख्य फसलें है तथा चना, तिवड़ा, गेंहू का उत्पादन रबी ऋतु में किया जाता है। राज्य के कुछ जिले गन्ना उत्पादन हेतु उपयुक्त है। छत्तीसगढ़ में 4 सहकारी शक्कर कारखाने संचालित हो रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के मध्य मैदानी क्षेत्र को मध्य भारत का धान का कटोरा भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य एक संयुक्त योजना के तहत द्विफसलीय क्षेत्र में वृद्धि, फसल पद्धति विविधिकरण एवं कृषि-आधारित लघु उद्योग के माध्यम से आय में वृद्धि पर कार्य कर रहा है। कृषकों की वर्षा पर निर्भरता को कम करने की दृष्टि से शासन सिंचाई सुविधा में वृद्धि हेतु कार्य कर रही है। छत्तीसगढ़ को तीन कृषि जलवायु क्षेत्र में विभाजित किया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ का मैदान (15 जिले), बस्तर का पठार (7 जिले) एवं सरगुजा का उत्तरी क्षेत्र (5 जिले) शामिल है। छत्तीसगढ़ का मैदान के अन्तर्गत 15 जिले आते हैं, जिसमें रायपुर, गरियाबंद, बलौदाबाजार, महासमुंद, धमतरी, दुर्ग, बालोद, बेमेतरा, राजनांदगांव, कबीरधाम, बिलासपुर, मुंगेली, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़ एवं कांकेर जिले का कुछ हिस्सा (नरहरपुर एवं कांकेर विकासखंड) शामिल है। बस्तर का पठार के अन्तर्गत 7 जिले जगदलपुर, नारायणपुर, बीजापुर, कोंडागांव, दंतेवाड़ा, सुकमा एवं कांकेर का शेष हिस्सा आता है। जबकि सरगुजा का उत्तरी क्षेत्र के अन्तर्गत 5 जिले सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर एवं रायगढ़ जिले का धरमजयगढ़ तहसील शामिल है। कृषि के विकास तथा कृषकों के आर्थिक उत्थान हेतु छत्तीसगढ़ राज्य शासन द्वारा किये गये प्रयासों के परिणामस्वरूप राज्य को पाँच बार ‘कृषि कर्मण’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है, जिसमें धान उत्पादन हेतु वर्ष 2010-11, वर्ष 2012-13, वर्ष 2013-14 में एवं दलहन उत्पादन हेतु वर्ष 2014-15 में तथा वर्ष 2016-17 मे कुल खाद्यान्न उत्पादन श्रेणी 2 अंतर्गत सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन शामिल है।
किसान की परिश्रम, चुनौती व परेशानियॉ
किसान कड़ी परिश्रम करता है, उन्हें फसल उत्पादन के लिये पूर्व से ही तैयारी करना प्रारंभ करना पड़ता है। ग्रीष्म काल से ही खेत की अकरस जोताई तेज धूप में करते हैं, जिससे खेत का खर-पतवार नष्ट हो जाये। कुछ किसान अपने खेतों में बैल गाड़ी या ट्रेक्टर के माध्यम से गोबर खाद का छिड़काव भी करते हैं, जिससे खेत की उर्वरक क्षमता में बढ़ोत्तरी हो। 10-15 वर्ष पूर्व किसान हल के माध्यम से अकरस जोताई करते थे, किन्तु वर्तमान में ट्रेक्टर की सुविधा उपलब्ध हो जाने के कारण उक्त कार्य को आसान बना दिया है। फसल लगाने के पश्चात् किसानों को फसल तैयार करने तथा फसल को बचाने के लिये कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें पहली चुनौती बारिश है। फसल बोने के कुछ दिवस पश्चात् ही यदि बारिश अच्छी नहीं हुई तो फसल का बीज अंकुरित नहीं होता और यदि जरूरत से ज्यादा बारिश हो गयी तो बीज के सड़ जाती है। उक्त दोनों ही परिस्थिति में फसल की दोबारा बोनी करना पड़ता है। जिसमें अधिक मेहनत व आर्थिक नुकसान होता है। फसल के विकास के लिये समय-समय पर उन्हें खाद एवं दवाई का भी छिड़काव करना पड़ता है तथा प्रत्येक दिन खेत में जाकर फसल में होने वाली बीमारियों व खेत में पानी की स्थिति का जायजा लेना पड़ता है।
कैसे करते है किसान कृषि कार्य
खरीफ फसल लेने वाले किसान वर्ष के 12 माह में सिर्फ 2 माह ही जब अत्यधिक गर्मी पड़ती है तभी आराम करते बाकी 10 माह वह अपने कृषि कार्य की तैयारी में लगे होते हैं। हिन्दी माह के अनुसार चैत्र(मार्च-अप्रैल) एवं वैशाख (अपै्रल-मई) माह ही उनके लिये आराम के दिन रहता है किन्तु इस दौरान उनके द्वारा अपने पारिवारिक कार्यक्रम जैसे शादी विवाह सहित अन्य सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। जैसे ही ज्येष्ठ (मई-जून) माह की शुरूवात होती किसान पुन: अपने खेती कार्य में जुट जाते हैं। सर्व प्रथम वे अपने खेतों की अकरस जोताई कराते है पश्चात् गोबर एवं अन्य घरेलू कचरों से बने हुए खाद का छिड़काव बैल गाड़ी अथवा ट्रेक्टर के माध्यम से करते हैं। उक्त कार्य होने के पश्चात् खेतों की सफाई कर काटा, कटिले पौधों, खेत के मेड़ों में उगे खर-पतवार की सफाई करते हैं। जैसे ही मानसून की पहली बारिश होती है किसान खेतों में हल लेकर पहुंच जाते हैं और धान की बोआई प्रारंभ कर देते हैं। धान बोआई होने के बाद दो-तीन दिन के अंतराल में बारिश होना आवश्यक है नहीं तो बीज के खराब होने का डरा बना रहता है।नवयुवा को कृषि कार्य में रूचि लेने की आवश्यक
कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि हमारे देश के नवयुवा केवल अधिक रूपये कमाने की सोच में अपनी परम्परा को छोड़ते जा रहे हैं। उनके द्वारा कृषि कार्य में बहुत कम रूचि लिया जा रहा है। कम पढ़े लिखे युवक भी कृषि कार्य नहीं कर अन्य सुविधा युक्त कार्य ही खोजते हैं, लेकिन कृषि कार्य करने से कतराते हैं। जिसके कारण वर्तमान समय में अधिकांश किसान 45-50 वर्ष से अधिक उम्र के हैं। यदि नवयुवाओं इसी तरह कृषि कार्य करने से कतराते रहे तो भविष्य में अन्न उत्पादन करने वाले कृषकों की संख्या में अत्यधिक कमी आ जायेगी और आगे क्या समस्या उत्पन्न हो सकती है, इसे आप भलीभांति समझ सकते हैं। वर्तमान में शासन के द्वारा भी कृषि कार्य करने वालों के लिये कई प्रकार की योजना संचालित की जा रही है। यदि उक्त योजनाओं का सही उपयोग कर नवयुवा वर्ग उन्नत कृषि कार्य करें तो अवश्य ही कृषि क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है एवं बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध हो सकता है।
दलहन, तिलहन की फसलें हो रही है विलुप्त
वर्तमान समय में किसान दलहन, तिलहन की फसल लेना बंद कर दिये हैं। करीब 10-15 वर्ष पूर्व सभी किसान धान की फसल लेने के उपरांत रबी की फसल लेते थे तथा अपने खेतों में तिवरा, तिल, मटर, चना जैसे दलहन एवं तिलहन की फसल की बोआई करते थे जिससे उन्हें अतिरिक्त आय होती थी, किन्तु कुछ वर्षों से किसान केवल धान की फसल ले रहे हैं, जिससे दलहन, तिलहन की फसल का उत्पादन कम होने लग गया है। इसका मुख्य कारण है मवेशियों को खुले में छोड़ देना। क्योंकि पहले किसानों द्वारा मवेशियों को चौबिसों घंटे निगरानी में रखते थे।
सुबह राऊत द्वारा मवेशियों को चराने के लिये ले जाया जाता था तथा शाम होते तक गौठान (दैईहान) में मवेशियों को रखा जाता था। शाम होते ही जब मवेशी घर आ जाते थे तो किसान सभी मवेशियों को अपने कोठार (कोठा) में रखते थे। जिससे खुले में मवेशी नहीं घुमते थे। इस वजह से उनका रबी की फसल की सुरक्षा होती थी, किन्तु वर्तमान में सभी किसान अपने मवेशियों को खुले में छोड़ देते हैं। जिसके कारण मवेशी रबी की फसल को चरकर नुकसान पहुंचाते हैं। यही कारण है कि वर्तमान में दलहन, तिलहन की फसल लेना किसान बंद कर दिये हैं। यदि किसानों के द्वारा स्वयं जागरूक होकर सभी मवेशियों को अपने घरों में रखा जाये और पूरे गांव के लोग अपने-अपने खेतों में दलहन-तिलहन की फसल की बोआई कर उसकी सुरक्षा करें तो किसानों की आमदनी बढ़ने के साथ ही खेत के उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी।