मंगलवार, 30 मार्च 2021

अन्नदाता की परेशानियों को जाने


एक किसान जो संसार के प्रत्येक जीव के लिये अपनी खून को पसीना के रूप में बहाकर अनाज का उत्पादन करता है एवं अपने परिवार को एक खुशहाल जिन्दगी प्रदान करने का सपना देखता है।  उनकी हालत आज दयनीय होती जा रही है। उनकी इस पीड़ा को अहसास करने, समझने तथा समाधान करने वर्तमान समय में आवश्यक पहल की आवश्यकता है। आधूनिक युग में जहाँ मशीनों से काम लिये जाने से किसानों को कुछ हद तक कम मेहनत करना पड़ रहा है किन्तु इन मशीनों की वजह से कृषि कार्य की लागत भी बढ़ गयी है। इस वजह से लघु व सीमांत किसानों के समक्ष आर्थिक समस्या भी उत्पन्न हो रही है। किसान को अन्नदाता कहा जाता है और किसान उक्त शब्द (अन्नदाता) को चरितार्थ भी करता है क्योंकि वह केवल अपने लिये या मनुष्य प्रजाति के लिये ही अन्न उत्पादन नहीं करता है, बल्कि उनके द्वारा उत्पादित फसल में समस्त जीव-जंतुओं का हिस्सा है। किसान अनाज का एक-एक दाना उगाने में कड़ी मेहनत, परिश्रम करता है। उन्हें फसल उत्पादन करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  धान की बोआई करता किसान

छत्तीसगढ़ की कृषि भूमि व फसलों पर एक नजर

भारतीय संघ के 26वें राज्य के रूप में 01 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। छत्तीसगढ़ की औसत वार्षिक वर्षा 1207 मि.मी. है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 138 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से फसल उत्पादन का निरा क्षेत्र 46.51 लाख हेक्टेयर है, जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 34% है। राज्य के लगभग 57% क्षेत्र में मध्यम से हल्की भूमि है। भारत के सबसे सम्पन्न जैव विविध क्षेत्रों में से छत्तीसगढ़ एक है, जिसका लगभग 63.40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वनाच्छादित है, जो कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 46% है। राज्य की कुल जनसंख्या में से लगभग 70% जनसंख्या कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं। 80 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी के कृषक है। धान, सोयाबीन, उड़द एवं अरहर खरीफ की मुख्य फसलें है तथा चना, तिवड़ा, गेंहू का उत्पादन रबी ऋतु में किया जाता है। राज्य के कुछ जिले गन्ना उत्पादन हेतु उपयुक्त है। छत्तीसगढ़ में 4 सहकारी शक्कर कारखाने संचालित हो रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के मध्य मैदानी क्षेत्र को मध्य भारत का धान का कटोरा भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य एक संयुक्त योजना के तहत द्विफसलीय क्षेत्र में वृद्धि, फसल पद्धति विविधिकरण एवं कृषि-आधारित लघु उद्योग के माध्यम से आय में वृद्धि पर कार्य कर रहा है। कृषकों की वर्षा पर निर्भरता को कम करने की दृष्टि से शासन सिंचाई सुविधा में वृद्धि हेतु कार्य कर रही है। छत्तीसगढ़ को तीन कृषि जलवायु क्षेत्र में विभाजित किया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ का मैदान (15 जिले), बस्तर का पठार (7 जिले) एवं सरगुजा का उत्तरी क्षेत्र (5 जिले) शामिल है। छत्तीसगढ़ का मैदान के अन्तर्गत 15 जिले आते हैं, जिसमें रायपुर, गरियाबंद, बलौदाबाजार, महासमुंद, धमतरी, दुर्ग, बालोद, बेमेतरा, राजनांदगांव, कबीरधाम, बिलासपुर, मुंगेली, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़ एवं कांकेर जिले का कुछ हिस्सा (नरहरपुर एवं कांकेर विकासखंड) शामिल है। बस्तर का पठार के अन्तर्गत 7 जिले जगदलपुर, नारायणपुर, बीजापुर, कोंडागांव, दंतेवाड़ा, सुकमा एवं कांकेर का शेष हिस्सा आता है। जबकि सरगुजा का उत्तरी क्षेत्र के अन्तर्गत 5 जिले सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर एवं रायगढ़ जिले का धरमजयगढ़ तहसील शामिल है।  कृषि के विकास तथा कृषकों के आर्थिक उत्थान हेतु छत्तीसगढ़ राज्य शासन द्वारा किये गये प्रयासों के परिणामस्वरूप राज्य को पाँच बार ‘कृषि कर्मण’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है, जिसमें धान उत्पादन हेतु वर्ष 2010-11, वर्ष 2012-13, वर्ष 2013-14 में एवं दलहन उत्पादन हेतु वर्ष 2014-15 में तथा वर्ष 2016-17 मे कुल खाद्यान्न उत्पादन श्रेणी 2 अंतर्गत सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन शामिल है।

किसान की परिश्रम, चुनौती व परेशानियॉ

किसान कड़ी परिश्रम करता है, उन्हें फसल उत्पादन के लिये पूर्व से ही तैयारी करना प्रारंभ करना पड़ता है। ग्रीष्म काल से ही खेत की अकरस जोताई तेज धूप में करते हैं, जिससे खेत का खर-पतवार नष्ट हो जाये। कुछ किसान अपने खेतों में बैल गाड़ी या ट्रेक्टर के माध्यम से गोबर खाद का छिड़काव भी करते हैं, जिससे खेत की उर्वरक क्षमता में बढ़ोत्तरी हो। 10-15 वर्ष पूर्व किसान हल के माध्यम से अकरस जोताई करते थे, किन्तु वर्तमान में ट्रेक्टर की सुविधा उपलब्ध हो जाने के कारण उक्त कार्य को आसान बना दिया है। फसल लगाने के पश्चात् किसानों को फसल तैयार करने तथा फसल को बचाने के लिये कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें पहली चुनौती बारिश है। फसल बोने के कुछ दिवस पश्चात् ही यदि बारिश अच्छी नहीं हुई तो फसल का बीज अंकुरित नहीं होता और यदि जरूरत से ज्यादा बारिश हो गयी तो बीज के सड़ जाती है। उक्त दोनों ही परिस्थिति में फसल की दोबारा बोनी करना पड़ता है। जिसमें अधिक मेहनत व आर्थिक नुकसान होता है। फसल के विकास के लिये समय-समय पर उन्हें खाद एवं दवाई का भी छिड़काव करना पड़ता है तथा प्रत्येक दिन खेत में जाकर फसल में होने वाली बीमारियों व खेत में पानी की स्थिति का जायजा लेना पड़ता है। 

कैसे करते है किसान कृषि कार्य

खरीफ फसल लेने वाले किसान वर्ष के 12 माह में सिर्फ 2 माह ही जब अत्यधिक गर्मी पड़ती है तभी आराम करते  बाकी 10 माह वह अपने कृषि कार्य की तैयारी में लगे होते हैं। हिन्दी माह के अनुसार चैत्र(मार्च-अप्रैल) एवं वैशाख (अपै्रल-मई) माह ही उनके लिये आराम के दिन रहता है किन्तु इस दौरान उनके द्वारा अपने पारिवारिक कार्यक्रम जैसे शादी विवाह सहित अन्य सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। जैसे ही ज्येष्ठ (मई-जून) माह की शुरूवात होती किसान पुन: अपने खेती कार्य में जुट जाते हैं। सर्व प्रथम वे अपने खेतों की अकरस जोताई कराते है पश्चात् गोबर एवं अन्य घरेलू कचरों से बने हुए खाद का छिड़काव बैल गाड़ी अथवा ट्रेक्टर के माध्यम से करते हैं। उक्त कार्य होने के पश्चात् खेतों की सफाई कर काटा, कटिले पौधों, खेत के मेड़ों में उगे खर-पतवार की सफाई करते हैं। जैसे ही मानसून की पहली बारिश होती है किसान खेतों में हल लेकर पहुंच जाते हैं और धान की बोआई प्रारंभ कर देते हैं। धान बोआई होने के बाद दो-तीन दिन के अंतराल में बारिश होना आवश्यक है नहीं तो बीज के खराब होने का डरा बना रहता है। 

समय-समय पर बारिश होने से धान 15 से 20 दिन में ही बियासी करने लायक हो जाता है, जिसमें किसानों के द्वारा उर्वरक का छिड़काव करने के उपरांत बियासी कार्य करते हैं। बियासी होने के उपरांत धान के पौधों को पूरे खेत में रोपाई (स्थानीय बोली चालना या गुड़ाई) किया जाता है। इस कार्य में खेत के जिस स्थान में धान के पौधें कम होते हैं वहॉ पर अधिक पौधें वाले स्थान से धान के पौधे लाकर लगाया जाता है। फसल को मजबूत करने के लिये खाद, उर्वरक का छिड़काव किया जाता है। कुछ दिनों बाद जब फसल की जड़ भूमि को अच्छी तरह से पकड़ लेती है और पौधे थोड़े से बड़े हो जाते हैं तो खेत में जगे खर-पतवार (बन) की निंदाई की जाती है। इस दौरान खेत में पर्याप्त पानी रखना आवश्यक है। उक्त कार्य करने के पश्चात् समय-समय पर खेत में जाकर पानी एवं धान में होने वाली विभिन्न बीमारियों की निगरानी करनी पड़ती है। 
यदि खेत के किसी हिस्से में बीमारी हो जाये तो उसमें दवाई का छिड़काव किया जाता है। धान के बालियों के निकलने के पश्चात् यदि खेत में करगा या अन्य धान के पौधें होते है उसकी पुन: निंदाई किया जाता है। पौधे में जब बालियों के अच्छी तरह निकल जाने तथा फसल के पक जाने के पश्चात् खेत में भरे हुए पानी की निकासी की जाती है ताकि फसल कटाई के दौरान खेत पूरी तरह सूख जाये और फसल को कटाने में किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो। आज से लगभग 10-15 वर्ष पूर्व फसल काटने के पश्चात् उसे बीड़ा बनाकर बैलगाड़ी, ट्रेक्टर के माध्यम से खलिहान (ब्यारा) में लाकर खरही बनाकर रखा जाता था तथा पूरे फसल को एकत्र करने के पश्चात् बैलगाड़ी, बेलन या ट्रेक्टर के माध्यम से धीरे-धीरे मिसाई करते थे, जिससे उक्त कार्य को उन्हें अधिक दिनों तक करना पड़ता था। किसान ऐसा इसलिये करते थे क्योंकि उस समय उनके पास आधुनिक साधन नहीं था और उनके पास अधिक संख्या में मवेशी होते थे, जिनके खाना की व्यवस्था फसल के पैरा के माध्यम से करते थे। किन्तु वर्तमान में मशीन (हार्वेस्टर) आ जाने के कारण अधिकांश किसान अपने खेत में धान की मिंसाई कर केवल धान को ही लाते है तथा पैरा को खेत में ही छोड़ देते हैं। इस तरह किसान कड़ी मेहनत कर धान का उत्पादन करते हैं। इस तरह किसान कड़ी मेहनत कर स्वयं एवं संसार के सभी जीव जंतु के लिये भोजन का उत्पादन करता है और सभी की खुशहार जिन्दगी के लिये प्रयासरत रहा है। 

नवयुवा को कृषि कार्य में रूचि लेने की आवश्यक

कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि हमारे देश के नवयुवा केवल अधिक रूपये कमाने की सोच में अपनी परम्परा को छोड़ते जा रहे हैं। उनके द्वारा कृषि कार्य में बहुत कम रूचि लिया जा रहा है। कम पढ़े लिखे युवक भी कृषि कार्य नहीं कर अन्य सुविधा युक्त कार्य ही खोजते हैं, लेकिन कृषि कार्य करने से कतराते हैं। जिसके कारण वर्तमान समय में अधिकांश किसान 45-50 वर्ष से अधिक उम्र के हैं। यदि नवयुवाओं इसी तरह कृषि कार्य करने से कतराते रहे तो भविष्य में अन्न उत्पादन करने वाले कृषकों की संख्या में अत्यधिक कमी आ जायेगी और आगे क्या समस्या उत्पन्न हो सकती है, इसे आप भलीभांति समझ सकते हैं। वर्तमान में शासन के द्वारा भी कृषि कार्य करने वालों के लिये कई प्रकार की योजना संचालित की जा रही है। यदि उक्त योजनाओं का सही उपयोग कर नवयुवा वर्ग उन्नत कृषि कार्य करें तो अवश्य ही कृषि क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है एवं बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध हो सकता है। 

दलहन, तिलहन की फसलें हो रही है विलुप्त

वर्तमान समय में किसान दलहन, तिलहन की फसल लेना बंद कर दिये हैं। करीब 10-15 वर्ष पूर्व सभी किसान धान की फसल लेने के उपरांत रबी की फसल लेते थे तथा अपने खेतों में तिवरा, तिल, मटर, चना जैसे दलहन एवं तिलहन की फसल की बोआई करते थे जिससे उन्हें अतिरिक्त आय होती थी, किन्तु कुछ वर्षों से किसान केवल धान की फसल ले रहे हैं, जिससे दलहन, तिलहन की फसल का उत्पादन कम होने लग गया है। इसका मुख्य कारण है मवेशियों को खुले में छोड़ देना। क्योंकि पहले किसानों द्वारा मवेशियों को चौबिसों घंटे निगरानी में रखते थे। 

सुबह राऊत द्वारा मवेशियों को चराने के लिये ले जाया जाता था तथा शाम होते तक गौठान (दैईहान) में मवेशियों को रखा जाता था। शाम होते ही जब मवेशी घर आ जाते थे तो किसान सभी मवेशियों को अपने कोठार (कोठा) में रखते थे। जिससे खुले में मवेशी नहीं घुमते थे।  इस वजह से उनका रबी की फसल की सुरक्षा होती थी, किन्तु वर्तमान में सभी किसान अपने मवेशियों को खुले में छोड़ देते हैं। जिसके कारण मवेशी रबी की फसल को चरकर नुकसान पहुंचाते हैं। यही कारण है कि वर्तमान में दलहन, तिलहन की फसल लेना किसान बंद कर दिये हैं। यदि किसानों के द्वारा स्वयं जागरूक होकर सभी मवेशियों को अपने घरों में रखा जाये और पूरे गांव के लोग अपने-अपने खेतों में दलहन-तिलहन की फसल की बोआई कर उसकी सुरक्षा करें तो किसानों की आमदनी बढ़ने के साथ ही खेत के उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी।


शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

कोरोना का काला समय रहा वर्ष 2020

Kovid-19

सन् 2020 गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवार के लिये काला समय के रूप में साबित हुआ। वर्ष के प्रारंभ में ही देश में कोविड-19 के प्रकोप से जहॉ लॉकडाउन लगाया गया, वहीं कई लोगों को रोजगार से वंचित होना पड़ा। कोविड-19 के कारण छोटे एवं मध्यम व्यवसाय संचालित करने वालों लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। प्रतिदिन बढ़ रही कोरोना संक्रमितों की संख्या के प्रत्येक कारोबारी को ऐसी हालत कर दी कि कई कारोबारियों का व्यवसाय ही चैपट हो गया। जबकि कई परिवार कोरोना संक्रमण से प्रभावित हुए, जिन्हें जीवन भर वर्ष 2020 काला वर्ष के रूप में याद रहेगा। वर्ष 2021 के प्रथम माह में ही देश में कोरोना के वैक्सीन आने से अब लोगों ने कुछ राहत की सांस ली है। वही व्यापार में भी कुछ उछाल आना प्रारंभ हुआ है। 

भारत में कोरोना का आकड़ा 

भारत सरकार के द्वारा 12 फरवरी को जारी आंकड़ा के अनुसार देश में कुल 10892746 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए, जिसमें से 10600625 लोग उपचार उपरांत स्वस्थ हो गये हैं। वहीं कोरोना संक्रमण से होने वाली मृत्यु का आंकड़ा 155550 है, जबकि कोरोना संक्रमण से संक्रमित सक्रिय लोगों की संख्या 136571 है। कोरोना वैक्सीन आ जाने के बाद लोगों में कोरोना के प्रति भय में कुछ कमी आयी है। आज दिनांक तक देश में लगभग 7967647(+462637) लोगों को कोरोना का वैक्सीन लगाया जा चुका है। भारत के राज्यों में कोरोना संक्रमण में दृष्टि डाले तो उनके आकड़े इस प्रकार है -




कोरोना काल में लोग रहे भयभीत

वर्ष 2020 के आगमन के साथ ही लोगों में कुछ नया करने का उत्साह था किन्तु वर्ष के प्रारंभ में ही सम्पूर्ण विश्व में कोरोना संक्रमण का प्रकोप फैल गया। लोग अपने घरों तक सिमट कर रहने मजबूर हो गये। कोरोनो संक्रमण भारत में फैलते ही जहॉ शासन द्वारा कोरोनों से बचाव के लिये कई नीतियॉ तैयार किया गया, वहीं लोगों के मन में एक भय व्याप्त हो गया। प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह भय घर बना बैठा कि कहीं मुझे अथवा मेरे परिवार को कोरोना मत हो जाये। लोग एक-दूसरे से मिलना-जुलना बंद कर दिये। सन् 2020 ही ऐसा वर्ष है जिसे लोग कई दशकों तक याद रखेंगे। क्योंकि इसी सन् में ही  सभी विद्यालय, महाविद्यालय, कार्यालय, विभाग, धार्मिक संस्थानों सहित शासकीय एवं अशासकीय संस्थाए कई माह तक बंद रहे। लोगों को अपना काम कराने में कई तकलीफो का सामना करना पड़ा। यहॉ तक कि हमेशा भीड़ से युक्त रहने वाली न्यायालय भी विरान हो गये। प्रसिद्ध एवं धार्मिक स्थलों में लोगों की आवाजाही बंद हो गयी और ऐसे संस्थानों के पाट भी कुछ दिवस के लिये बंद कर दिये गये। देश की प्रमुख त्यौहार दीपावली, होली, दशहरा, नवरात्रि पर कोरोना का छाया मंडराने लगा और लोग हर्षोल्लास के साथ त्यौहार मनाने के बजाय घर की चारदीवारी में ही रहने मजबूर हो गये। यहॉ तक कभी न थमने वाली रैल की पहिये भी इस वर्ष रूकने मजबूर हो गया। लोग जहॉ थे वहीं तक सीमट कर रहे गये। जिसका असर देश की अर्थ व्यवस्था पर भी पड़ा और देश की आर्थिक उन्नति कुछ दिनों के लिये रूक सी गयी। 2020 ही ऐसा वर्ष है जब प्रत्येक लोगों के मन में भय, चिन्ता एवं अपनों की बिछड़ने की यातना सतायी। विद्यार्थियों का स्कूल पूरे सत्र बंद रहा। जो बच्चे कभी पुस्तक से पढ़ाई करते थे वे आनलाईन क्लास के संबंध में जानने लगे। जो लोग अंग्रेजी जानते नहीं, समझते नहीं थे उनके दिलो-दिमांग में भी होम आइसोलेशन, मास्क, सेनेटाईजर, कोविड सेंटर जैसे अंग्रेजी शब्द गुंजने लगे। लोगों के मन में अपने परिचितों से मिलने में झिझक उत्पन्न हो गयी। जब कोई परिचित का व्यक्ति पास आता हुआ दिखाई देता था तो  लोग पहले से उनसे दूरी बनाने अपने सीट से उठकर पीछे खिसकने लगे। लोगों ने तो कोरोना का विस्तृत अर्थ भी बना लिया जिसमें   ‘को़रो़ना’ का ‘को’ से कोई, ‘रो’ से रोड एवं ‘ना’ से न निकला हो गया। अर्थात् ‘कोरोना’ को ‘कोई रोड में ना निकलना’ का नारा दे दिया गया। कुछ लोगों ने तो ‘कोरोना’ का अर्थ यह भी निकाला कि ‘कोई रोना ना’। उक्त दोनों अर्थ का विशेष महत्व है पहला अर्थ ‘कोई रोड में ना निकलना’ का मतलब है कि कोरोनों को रोकने के लिये सभी घर पर रहें। वहीं दूसरे अर्थ ‘कोई रोना ना’ का सामान्य शब्दों में अर्थ है कि जब परिवार के कोई सदस्य कोरोना से साथ छोड़ दे तो कोई दुखी न मानाना।

कोरोना का व्यवसाय पर असर 

कोरोना काल के दौरान में देश के लगभग सभी व्यवसाय पर मंदी का आलम रहा। छोटे एवं मध्यम वर्गीय व्यवसाय करने वालों में से कुछ का तो व्यवसाय ही बंद हो गया। वहीं कुछ व्यवसायी खींचतान कर अपनी जिन्दगी चला रहा है। नगर के एक कम्प्यूटर टायपिंग एवं आॅनलाईन कार्य करने वाले व्यवसायी का कहना है कि वह पूरा कोरोना काल के दौरान ग्राहकों का इंतजार करता है। उनका दुकान किराये के मकान में संचालित है। मकान मालिक के द्वारा दुकान का भाड़ा भी नहीं छोड़ा गया। इसके कारण उसके द्वारा पूर्व में आय अर्जित किये गये सभी रूपये परिवार के भरण-पोषण एवं अतिआवश्यक सामाग्री खरीदने में ही व्यय हो गया। अब उनके पास कोई जमा पूंजी नहीं है। वर्तमान में रोज कमाओ, रोज खाओ की स्थिति निर्मित हो गयी है। वहीं कुछ अधिवक्ताओं ने बताया कि कोरोना काल के पूर्व जब न्यायालय नियमित रूप से खुल रही थी तो उन्हें प्रतिदिन 500-1000 रूपये की आमदनी हो जाती थी किन्तु जब से कोरोना का संक्रमण फैला तब से उन्हें कोई काम नहीं मिल पा रहा है। जिसके कारण उनके समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। अन्य दुकानदारों का कहना है कि कोरोना से उपजी परिस्थितियों से ग्राहकों की संख्या में बहुत गिरावट आयी है। पहले रोजाना 50 से 100 ग्राहक दुकान पर दस्तक देते थे परंतु अब इनकी संख्या आधी से भी कम होकर रह गई है। कुछ लोगों ने तो अपना व्यवसाय ही बदल दिया जैसे एक अधिवक्ता की पेशा करने वाला व्यक्ति फल-सब्जी का व्यवसाय करने लगा। जो व्यक्ति कभी सब्जी खरीदने जाता था वह सब्जी बेचने का व्यवसाय करने लगा। परिवहन से संबंधित व्यवसाय करने वालों ने तो माथा पकड़ लिया कि अब उनके वाहनों के पहिये थमने के साथ ही उनकी आय की स्रोत भी थम गये। 

कोरोना ने बढ़ाया साग-सब्जी का भाव

कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान जहॉ एक ओर पूरा देश लॉकडाउन से जूझ रहा था, वहीं कुछ सब्जी विक्रेता दुगुनी आमदनी प्राप्त कर रहे थे। इस दौरान सब्जी मंडी से कम दामों पर सब्जी खरीदकर कोचियों के द्वारा 3 से 4 गुणा अधिक दाम पर बेचा गया। चूंकि लॉक डाउन के दौरान बाजार लगाना प्रतिबंधित था तथा प्रत्येक चैक-चैराहों पर एक या दो सब्जी विक्रेताओं की बैठने की व्यवस्था की गई थी, जिसका फायदा सब्जी विक्रेताओं ने खुब उठाया। कभी 5 से 10 रूपये प्रति किलोग्राम में मिलने वाली टमाटर 80 से 100 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा गया। 10 से 20 रूपये के भिंडी, मूली, सेमी आदि सब्जियों का मूल्य 50 रूपये से अधिक हो गयी। एक ओर जहॉ लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे तो आय का कोई साधन नहीं था वहीं दूसरी ओर सब्जी-भाजी के दामों में तेजी से उछाल आ रही थी। जिसके कारण कई लोगों के घर में तो कई दिनों तक सब्जी बना भी नहीं तथा वे नमक, मिर्च एवं आचार से ही अपना पेट भर लिया।

कोरोना काल में हुए फायदा

ऐसा नहीं है कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान केवल नुकसान, परेशानी, भय का सामना करना पड़ा। कोरोना संक्रमण फैलने के कारण कुछ लाभ भी हुआ है। अब आप सोचेंगे कि इस दौरान तो केवल लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा है तो कोरोना संक्रमण से लोगों को क्या और किस प्रकार लाभ हुआ होगा? तो मैं बताता हूँ कि कोरोना संक्रमण के दौरान लोगों को क्या-क्या लाभ हुआ। सर्व प्रथम लाभ हुआ पर्यावरण प्रदूषण कमी होना। कोरोना संक्रमण काल के दौरान देश के अधिकांश संयंत्रों, कम्पनियों के बंद होने के साथ ही बस, ट्रक एवं अन्य छोटी-बड़ी वाहनों का आवागमन बहुत ही कम हुआ। जिसके कारण इन संयंत्रों, कम्पनियों एवं वाहनों से निकलने वाली प्रदूषण कम हो गया और प्रदूषित पर्यावरण में कुछ सुधार भी हुआ। वहीं देश की महान एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ‘गंगानदी’ के जल की शुद्धता में भी वृद्धि हुई। द्वितीय लाभ के अन्तर्गत ग्रामीण गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार लाभान्वित हुए जिनके यहाँ शादी, जन्मोत्सव, बरसी, सामान्य रूप से स्वर्गवास लोगों के सामाजिक भेज, तेरहवीं, दशगात्र सहित अन्य सामाजिक स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों को आयोजन हुआ।  शासन द्वारा कोविड-19 के संबंध में जारी दिशा निर्देशों के तहत बहुत कम संख्या में भीड़ एकत्र करने की अनुमति दी गई थी। जिसके कारण ऐसे परिवार के द्वारा केवल निजी एवं घनिष्ठ रिश्तेदारों को ही कार्यक्रम में शामिल होने आमंत्रित किया गया, जिसकी वजह से उन्हें कार्यक्रम के आयोजन में कम खर्च करना पड़ा। यदि इन परिवारों के द्वारा सामान्य स्थिति में कार्यक्रम का आयोजन करते तो कोरोना काल के दौरान हुए खर्च से 5 से 10 गुणा अधिक व्यय करना पड़ता। इस तरह कोरोना वायरस ने जहाँ लोगों को परेशान व दुखी किया वही कुछ लोगों को आर्थिक रूप से फायदा भी पहुंचाया। 

धन्यवाद


मंगलवार, 26 जनवरी 2021

विवाह में होने वाले फिजूल खर्च पर विचार आवश्यक


हिन्दुओं में विवाह एक प्रकार का संस्कार है, जो पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिये एक समान है। यहाँ विवाह को धार्मिक बंधन एवं कर्तव्य समझा

marriage
जाता है। विवाह का दूसरा अर्थ समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जाने वाला दाम्पत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी होता है। विवाह दो व्यक्तियों (स्त्री व पुरुष) के धार्मिक या कानूनी रूप से एक साथ रहने के लिये प्रदान की जाने वाली सामाजिक मान्यता है। यह मानव समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाये रखने का प्रधान जीव शास्त्री माध्यम भी है। विवाह आजीवन चलने वाला संस्कार है। जिसमें पति-पत्नी का संबंध अटूट होता है। 

लगभग सभी समाजों में विवाह संस्कार कुछ विशिष्ट विधियों के साथ सम्पन्न किया जाता है, जो पति-पत्नी बनने की घोषणा करता है। संबंधियों को विवाह समारोह में बुलाकर उन्हें इस नवीन दाम्पत्य का साक्षी बनाया जाता है। धार्मिक विधियों द्वारा उसे कानूनी मान्यता और सामाजिक सहमति प्रदान की जाती है। विवाह की तैयारी में माता-पिता संतान के पैदा होते ही जुट जाते हैं। यदि परिवार सामर्थवान है तब तो बच्चों के विवाह में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन यदि परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है और यदि उनके यहाॅ बेटियों की संख्या अधिक है तो पालकों का सारा जीवन इस चिन्ता में व्यतीत हो जाता है कि मैं अपने बेटियों का विवाह कैसे करूं? इनकी शादियाॅ किस तरह से व कैसी होगी? समृद्धशाली लोग अपनी मर्जी से वर पक्ष को उपहार स्वरूप अधिक राशि या सामाग्री देकर समाज में अपनी हैसियत का उच्च प्रदर्शन करते है, जिससे उनका रूतबा बना रहें। उच्च वर्ग के इस प्रकार के दिखावटी प्रदर्शन विभिन्न वर्गों के बीच प्रतियोगिता का रूप भी ले लेता है। फिर किसी की बराबरी करने के लिये शादी समारोह में अपना भी रूतबा दिखाने हेतु आर्थिक रूप से कमजोर व मध्यम वर्गीय परिवार कर्जदार भी बन जाते हैं। ग्रामीण अंचल में विवाह में शामिल होने वाले समस्त रिश्तेदारों व परिजनों को कपड़े, साड़ी आदि देने की परम्परा है। गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार की कमर अपनी बेटियों के शादी करने में ही टूट जाती है तथा विवाह हेतु लिये गये कर्ज को पटाने अपनी बाकी जिन्दगी को भी दुश्वार कर देता है। 



शादी-विवाह समारोह में अधिक राशि को पानी की तरह बहाया जाता है। यह अनावश्यक खर्च फिजूल खर्ची की श्रेणी में ही गिना जाता है। वर्तमान में अधिक दान या उपहार देकर भी योग्य वर या वधू पाना दुष्कर है। मैं यह नहीं कह रहा है कि योग्य वर या वधू नहीं मिलेंगे। लेकिन योग्य वर या वधू का अर्थ तभी सार्थक हो सकता है जब दोनों (वर-वधू) मिलकर अपनी जिन्दगी को खुशहाल बनाये और जीवन भर एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देते रहें। यह विचार करने योग्य है कि क्या अधिक राशि या सामाग्री उपहार में देने से वर या वधू का जीवन सुखमय रहेगा। ऐसा नहीं है कई मामलों में अधिक राशि या सामाग्री उपहार देने के बावजूद भी दोनों (वर, वधू) कुछ दिन, कुछ माह या कुछ वर्ष एक साथ निवास करने के पश्चात् पृथक-पृथक रहने लग जाते हैं। ऐसे में आपके द्वारा अधिक उपहार देने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता है। कुछ नवजवानों की यह प्रबल इच्छा होती है कि वह अपने विवाह सेलिब्रेट करेंगे, आतिशबाजियाॅ करेंगे। ऐसे विचार को माॅ-बाप पूरा करने के लिये बच्चों की खुशी के लिये मजबूर हो जाते हैं। क्या यह विचार करने योग्य नहीं है कि हम अपने बच्चों के शादी में जितनी राशि खर्च कर रहे हैं, यदि उतनी राशि का उपयोग उनके स्वावलंबी बनने, जीवन निर्माण करने तथा भविष्य को सुनहरा बनाने में उपयोग करें तो ज्यादा सार्थक होगा?

फिजूल खर्च से बचने आदर्श विवाह एक विकल्प

क्या आप जानते हैं कि आपके द्वारा फिजूल खर्च किये जाने से स्वयं का धन ही नहीं अपितु देश की सम्पदा का भी व्यर्थ उपयोग होता है? वहीं बड़े-बड़े विवाह समारोह के आयोजन से बहुत सारी परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। स्वयं एवं देश की सम्पदा को फिजूल खर्च से बचाने के लिये एक आसान तरीका है आदर्श विवाह’ हाॅ, आदर्श विवाह एक ऐसा विवाह है जिसमें आप कम खर्च में भी अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह कर सकते हैं। साथ ही विवाह की तैयारी में लगने वाले श्रम, समय सहित अन्य परेशानियों से भी छुटकारा पा सकते हैं। आदर्श विवाह वर-वधू के परिवारों की आपसी समझदारी, रजामंदी एवं सामंजस्य से सादगी पूर्ण तरीके से बिना दान-उपहार, बिना दिखावटीपन व कुछ ही समय में सम्पन्न कराया जा सकता है। इस विवाह का फायदा अनावश्यक खर्चों की बचत करना है। समाज में फैली कुरीतियाॅ जड़े जमायी हुई, जिनको न करने पर हमें कोई नुकसान नहीं होने वाला, फिर भी परम्परा को ध्यान में रखते हुए उनको जगह देते जाते हैं। उन कुरीतियों को समाप्त करने के लिये ‘आदर्श विवाह’ आवश्यक है। इस तरह आदर्श विवाह खर्चीली शादी, फिजूल खर्च, दहेज प्रथा व अनेक कुरीतियों या प्रथाओं को खत्म करने का सशक्त माध्यम है। 

क्या है आदर्श विवाह?

आदर्श विवाह आपके रीति रिवाज एवं परम्परा के अनुसार सम्पन्न किया जाता है। यह विवाह वर एवं वधू पक्ष के रजामंदी से होता है, जिसमें दोनों पक्षों के परिवार के कुछ सदस्य ही शामिल होते हैं। यह विवाह किसी मंदिर में भी सम्पन्न कराया जा सकता है। जिसमें वह सारी रश्म पूरी की जाती है जो एक सामान्य विवाह में होता है। आदर्श विवाह में विवाह समारोह का आयोजन, रिश्तेदारों, परिचितों व समाज के लोगों को वस्त्र प्रदान नहीं किया जाता। इस विवाह में किसी भी प्रकार की उपहार नहीं दिया जाता। वधू पक्ष के द्वारा केवल अपनी बेटी की विदाई की जाती है। 



सामूहिक आदर्श विवाह के लिये प्रयास आवश्यक

प्रत्येक समाज एक सशक्त एवं संगठित है। समाज का एक अलग ही महत्व है। संगठित समाज में व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित पाता है, जिसके कारण अधिकांश परिवार समाज की प्रत्येक नियम, परम्परा, रीति-रिवाज को मानता है। ऐसे में समाज के पदाधिकारियों एवं प्रतिष्ठित नागरिकों को भी अपने समाज के उत्थान एवं विकास के लिये पहल करने की आवश्यकता है। आपका समाज तभी विकसित हो सकेगा, जब समाज के प्रत्येक परिवार व व्यक्ति शिक्षित, आत्मनिर्भर होकर मूलभूत सुविधा से वंचित न होकर ‘खुशहार जिन्दगी’ व्यतीत कर सकें और ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब उस परिवार के पास आय का साधन हो तथा परिवार के जीवन यापन के लायक वह धन की बचत कर सकें। यदि गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार विवाह समारोह का आयोजन करता है, तो उनका जीवन भर की सारी कमाई एक ही समारोह में समाप्त हो जाती है। जिसके पश्चात् उन्हें पुनः अपने जीवन यापन के लिये कसमोकस करना पड़ता है। यह घटना एक ही परिवार के साथ नहीं बल्कि समाज के अधिकांश परिवार के साथ घटित होता है। ऐसे में समाज को भी सामाजिक जनों की सुख, सुविधाओं एवं उन्नति के लिये प्रयास करना चाहिए। समाज को सामूहिक आदर्श विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। समाज के लोगों को अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह कम खर्च में कराने के लिए प्रेरित करना चाहिए। समाज द्वारा ऐसे समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए जहाॅ अधिक से अधिक युवक-युवतियों का एक ही स्थान पर विवाह सम्पन्न हो सके। यदि समाज के सभी वर्ग के लोग आदर्श विवाह करना प्रारंभ कर दिया तो निश्चित ही एक परिवार, समाज सहित देश की सम्पदा में वृद्धि होना प्रारंभ हो जायेगा। 

आदर्श विवाह के लिए उच्च वर्ग को आगे आने की आवश्यकता

मेरा मानना है कि उच्च वर्ग के विचारों, उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का अनुसरण निम्न एवं मध्यम वर्ग के परिवार करते हैं। यह ज्यादा देखने को मिलता है कि यदि एक उच्च वर्ग के विवाह समारोह में निम्न या मध्यम वर्ग के परिवार के कोई सदस्य सम्मिलित हो जाता है तो वह भी वहाॅ की व्यवस्था, सुविधा एवं शान-शौकत को देखकर अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह वैसे ही करने का विचार करता है। यदि कोई युवक, आर्थिक रूप से सम्पन्न अपने किसी दोस्त के शादी में शामिल होता है, तो वह भी उसी प्रकार विवाह करने का विचार बना लेता है। जिसके कारण उसके माता-पिता को अपने पुत्र की खुशी के लिए खर्चीली विवाह समारोह का आयोजन करना पड़ता है। ऐसे में उच्च वर्ग को अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह सादगी पूर्ण तरीके से कर विवाह में अनावश्यक खर्च होने वाली सम्पत्ति का उपयोग अपने संतानों, परिजनों व परिचितों के उज्जवल भविष्य को बनाने में करना चाहिए। उच्च वर्ग को अनावश्यक खर्च न कर आर्थिक रूप से कमजोर अपने सहकर्मियों, दोस्तों, परिजनों एवं कर्मचारियों के भविष्य को बनाने में बचत राशि का उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवार में यह भावना जागृत होगा कि जब आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति के द्वारा अपने पुत्र-पुत्रियों का आदर्श विवाह कराया जा सकता है तो हम भी आदर्श विवाह करायेंगे। जब कहीं सामाजिक समारोह होगा तो वहाँ इस विषय पर चर्चा प्रारंभ होगी। कहीं कोई मंचीय कार्यक्रम होगा तो वहाँ इस विषय पर संभाषण होंगे। समाज के सभी सक्षम जिम्मेदार लोगों में भी नई चेतना जागृत होगी। 

यह लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य यहीं है कि वर्तमान परिवेश को ध्यान में रखते हुए केवल व्यक्तिगत स्वार्थ को न देखकर समाज में रहने वाले सभी तबकों (अमीर-गरीब) में समानता का भाव लाया जा सके। लोकहित को सर्वोपरि मान आर्दश विवाह को स्वीकार कर इसका महत्व सभी तक पहुंचाया जा सके। एक ‘खुशहार जिन्दगी’ तभी सम्भव है, जब हम अपने आसपास रहने वालों को खुश देखेंगे। उनका उन्नति होता देखेंगे। जब आपके आसपास का वातावरण उदास रहेगा तो आप कैसे खुश रहे सकते हंै। उदाहरण के लिये आपके घर के पास एक दुर्गंध युक्त कोई वस्तु है जिससे अत्यंत दुर्गंध उठ रही है और उसे हटाने वाला कोई नहीं है, जब तक उसे आप स्वयं नहीं हटायेंगे, तब तक उससे दुर्गंध उठती रहेगी। इसी प्रकार जब तक आप स्वयं समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने सार्थक पहल नहीं करेंगे, तब तक हमारे समाज, गांव, प्रांत, देश का विकास नहीं हो सकता। 


शनिवार, 23 जनवरी 2021

संवेदनशील धागों की जरूरत

 परिवार संवेदनाओं के तारों से बुने जाते हैं। जिस परिवार के सदस्यों के मध्य यह भावनात्मक धागा मजबूत होती है, वह परिवार उतना ही सुखी, खुशहाल व समृद्ध होता है। परिवार को जोड़े रखने के लिए इन्हीं संवेदनशील धागों की जरूरत पड़ती है। ये जितने मजबूत होते हंै परिवार का वातावरण उतना ही खुशहाल होता और वे जितने कमजोर होते हैं, पारिवारिक वातावरण उतना ही असहज होता है। परिवार में संवेदना के इन तारों को जोड़े रखना, परिवार के महिलाओं की जिम्मेदारी हुआ करती है। ऐसे यह कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है कि महिलाएॅ परिवार की रीढ़ की हड्डी है। चूंकि कुछ वर्षों पूर्व महिलाओं का काम केवल घर संभालना होता था परन्तु वर्तमान की कामकाजी महिलाओं के लिए ऐसा करना एक चुनौती बन गया है। जो महिलाएॅ रिश्तांे की अहमियत को समझती है, भावनात्मक मूल्यों को सर्वाेपरि रखती है, वे घर को एक सूत्र में पिरोये रखती है। जबकि अन्य को ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पाता, जिसका प्रभाव या नौकरी पर पड़ता है या फिर रिश्तों पर।

आज महिलाओं के लिए बाहर कार्य करना व घर आकर अपने परिवार के साथ रहना, परिवार के सदस्यों को संभालना, अपने पूरे दायित्व को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है। बाहर काम करना, काम-काज के तरीकांे के अनुसार स्वयं को ढालना, फिर वहां से आकर सीधे घर में सारा कार्य देखना, अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का निर्वहन करना, रिश्तांे की संवेदनशीलता को बनाए रखना एक बड़ा कार्य हैै। घर व बाहर के बीच सामंजस्य रखना आज की महिलाआंे के लिए चुनौती बन गई है और विशेषकर तब जब कोई महिला अपने कामकाजी कैरियर की बुलंदियों को छू रही हो।

इतिहास में उन जाबाजांे को स्थान मिलता है जो अपने साहस, समझदारी एवं विवेक के बल पर कठिन से कठिन परिस्थितियों को अपनी इच्छानुसार मोड़ने का सामर्थ रखते हैं। इतिहास उन्हें याद नहीं करता है जो संघर्षों से हार जाते हंै, चुनौतियों से बिखर जाते हैं एवं संकटों से घबरा जाते हैं। परंतु जो परिस्थितियों की चुनौतियों के बावजूद समझदारी एवं विवेक के साथ अपनी विभिन्न जिम्मेदारियों के बीच संतुलन एवं सामंजस्य रख पाते हंै वे ही अपना नाम रोशन कर पाते हंै। जिम्मेदारी के प्रतिबद्ध भावनाओं की यह अभिव्यक्ति बताती है कि एक महिला कितनी भी बुलंदियों को क्यों न छू ले, उसे यह एहसास सदैव रहता है कि कब, कहाँ और किन परिस्थितियों में उसके परिवार को उसकी जरूरत पड़ेगी। हम महिलाओं को आजादी मिली, परिवार से, समाज से, देश व देश के कानून से आत्मनिर्भर बनने की। ये आत्म निर्भरता से परिवार तरक्की करता है, जो समाज को आगे ले जाती है। ये वो खुशी होती है जो अपने दम पर होती है, वो खुशी जो उसके भीतर से निकलकर उसके परिवार से होते हुए समाज फिर देश तक जाती है। ऐसे विचार की आजादी की वह केवल एक देह नहीं उससे कहीं बढ़कर है। यह साबित करने की आजादी अपनी बुद्धि, अपने विचार, अपनी काबिलियत, अपनी क्षमताओं और अपनी भावनाओं के दम पर वह अपने परिवार और समाज की एक मजबूत नींव है। उसे वस्तु की तरह भी न देखा जाए, वस्तु की तरह देखना उसकी विशिष्टता, विविधता व समृद्धि को अस्वीकार करना है। महिलाओं को न देवी समझा जाए और न ही दासी। उसे सामान्य मानवी समझा जाए और उसे वे सभी अधिकार दिये जाए जो सभी मानव के लिए है।

महापुरूषों का मानना है कि इस क्षेत्र में पेशेवर जिम्मेदारियों को निभाना बड़ी चुनौती का कार्य है, बड़ी सावधानी के साथ उन्हंे कार्य करना पड़ता है। वह जितना बड़ा होता है, कार्य भी उतना ही बड़ा होता है परंतु बड़ी दृढ़ता के साथ वे अपना कार्य पूरा करके नियत समय पर अपनी घर पहुंच जाती है बेटियों के पास। 

आज की महिलाएं अपने कैरियर के साथ अपने घर को भी उतना महत्व देती है, उन्हंे यह अवश्य ध्यान रहता है कि कोई भी स्थान छूट ना जाए। इसलिए वे दोनांे के बीच में सामंजस्य व संतुलन रखने का भरपूर प्रयास करती है। चूंकि महिलाओं में सहनशीलता एवं धैर्य पर्याप्त होता है, अतः वे दोनों क्षेत्रों का कुशलता के साथ नियंत्रित कर लेती है। पूरे समय नौकरी करने वाली महिलाओं को कभी भी अपने काम को परिवार पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जब वे घर पर होती है, बच्चों व पारिवारिक लोगों के साथ होती है तो बाहरी काम को हाथ नहीं लगाती, अनावश्यक फोन काॅल नहीं सुनती। 

जीवन मे संघर्ष न हो, चुनौतियाॅ न हो- ऐसा तो संभव नहीं है। मुश्किल परिस्थितियों में भी जो धैर्य, साहस एवं समझदारी के साथ कार्य करता है वही अपने जीवन में सफल हो सकता है। फिर वह क्षेत्र काम का हो या फिर घरेलू हो। सफलता मंे सुझ-बुझ सामंजस्य व कुशलता का होना जरूरी है। एक स्त्री के लिए भावनात्मक रूप से अपना परिवार बड़ा महत्वपूर्ण होता है इसलिए इन भावनाओं का पोषण करते हुए जो अपना कार्य करता है वह अवश्य सफल होता है।

परिवार व कार्यक्षेत्र दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं, दोनों में जो संतुलन व सामंजस्य बनाए रखता है वही जीवन में सफल होता है। आज की महिलाओं में यह क्षमता अभूतपूर्व ढंग से विकसित हो रही है। वह दोनों क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा, कुशलता व समझदारी के साथ आगे बढ़ रही है। इन्ही गुणों का विकास कर खुद के जीवन को सफल व परिवार को खुशहाल बनाया जा सकता है।