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रविवार, 15 अगस्त 2021

पति -पत्नी के बिगड़ते रिश्तों से बच्चों पर पड़ता है कुप्रभाव

वर्तमान में पति-पत्नी के रिश्तों में ज्यादा खटास देखने को मिल रहा है। ऐसे में परिवार खुशहाल जिन्दगी व्यतीत करने के बजाय अपनी दाम्पत्य जीवन को बचाने के लिये अधिकांश समय परेशान रहते हैं। पति-पत्नी के बिगड़ते रिश्तों की वजह से बच्चों व बड़े बुजुर्गों के समक्ष भी कई प्रकार की समस्याए उत्पन्न हो जा रही है। पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट आने का मुख्य कारण यह भी है कि लोग भारतीय संस्कृति एवं अपनी जिम्मेदारियों को भूलकर स्वच्छंद एवं स्वतंत्र जीवन जीने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। कुछ हद तक तो यह सही है कि व्यक्ति को स्वच्छंद एवं स्वतंत्र जीवन जीना चाहिए किन्तु उसमें भी परिवार के प्रति कुछ जिम्मेदारी है। परिवार को सुखपूर्वक रखने एवं खुशहाल जीवन के लिये पति-पत्नी सहित परिवार के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझे और उसके अनुरूप कार्य करें। किन्तु इस आधुनिक युग में लोग केवल अपने निजी स्वार्थ के लिये ही अपने ही परिजनों का अहित करने में लगे हुए हैं। क्या यह गलत नहीं है कि अपनी कुछ स्वार्थ सिद्धि के लिये अपने ही पति, माता, पिता, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री सहित अन्य परिजनों को नुकसान पहुंच रहे हैं?

यदि हम अपने परिवार के सदस्यों की बातों को समझे, उसकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करें, उनकी परेशानी को दूर करने में पहल करें तो निश्चित ही हम अपने परिवार के सभी सदस्य को एक साथ एक ही घर में रख सकते हैं। खासकर पति और पत्नी की रिश्तों में किसी भी प्रकार की मनमुटाव, बच्चों पर विपरीत प्रभाव डालती है। ऐसे में पति-पत्नी को आपसी समझदारी से एक-दूसरे के भावनाओं को समझने की आवश्यकता होती है। मैंने देखा है कि कई दम्पत्ति 30-35 साल दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने के बाद भी एक-दूसरे से तलाक ले लेते हैं। ऐसे में वह यह नहीं सोचते कि पति-पत्नी के अलग हो जाने से बच्चों के पर क्या असर पड़ेगा? उनका भविष्य कैसा होगा? निश्चित ही यह सोचने वाली बात है कि यदि किसी बच्चे के माँ और पिता अलग-अलग रहे तो उसे अधूरापन लगेगा। आप अपने पुत्र या पुत्री के बचपन के समय को याद करें जब वह बहुत छोटा था या मात्र 2-3 वर्ष का था तब वह माता के द्वारा डाटे जाने पर अपने पिता के पास जाकर अपनी बात कहता था और पिता के डाटने पर माता के पास जाकर पिता का शिकायत करता था। उस समय तो उसकी मन:स्थिति बचपन की थी। किन्तु वह बड़े होने पर भी इसी प्रकार का व्यवहार करता है। यदि किसी समस्या में पड़ जाता है जिसे वह  पिता से नहीं कह सकता उसे माँ के पास जाकर बड़ी ही सरलता से कह देता है। इसी प्रकार किसी चीज की आवश्कता पड़ने पर वह अपने पिता को उसे पूरा करने के लिये कहता है। ऐसे में पति और पत्नी को अपनी मन को शांत रखकर अति महत्वाकांक्षा को मार कर बच्चों के खुशहला जिन्दगी के लिये एक-दूसरे का साथ जीवनभर देना चाहिए। 

पत्नी की उम्मीद रहती है कि पति बिना कहे उनकी बातें समझे

पति-पत्नी का रिश्ता सबसे मजबूत कहा जाता है। ऐसे मेंं महिलाएं भले ही अभिव्यक्त न करें, लेकिन वे उम्मीद करती हैं कि उनके पति उन्हें समझें और उनका साथ दें। पति-पत्नी के बीच का रिश्ता ऐसा होता है कि वह एक-दूसरे की भावनाएं बिना कहे ही समझ जाते हैं। शादी के बाद ज्यादातर रिश्तों में कड़वाहट तब आती है, जब कपल एक-दूसरे के लिए समय निकालना कम कर देते हैं।  कई बार वह घर पर होकर भी मोबाइल में भिड़े रहते हैं। जबकि पत्नी को आॅफिस के साथ ही घर भी देखना होता है।अगर पत्नी हाउस गृहणी है, तो भी उसके पास घर से जुड़े कई काम होते हैं, जिनमें पूरा दिन चला जाता है। इस स्थिति में पति भी उन्हें समय न दे, तो उन्हें महसूस होता है कि वह एक कर्मचारी हैं, जो अपनी जिम्मेदारी निभाए जा रही हैं। ऐसे में पति को पत्नी अनदेखा नहीं करना चाहिए। क्योंकि पत्नी जो कर रही हैं, वह आपके और घर के लिए ही है। वह आपसे प्यार करती हैं इसलिए बदले में अच्छी देखभाल और प्यार की उम्मीद करती हैं। अगर उन्हें यह महसूस ही नहीं होगा, तो वह खुश नहीं रह सकेंगीं। जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है। छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना होता है। 

पति-पत्नी के रिश्तों को मजबूत करने, आपस में विश्वास बढ़ाने करें यह उपाय :-

मैसेज की अपेक्षा पत्नी से करें सीधा संवाद 

दंपत्ति जीवन के छोटे-बड़े पलों जैसे त्यौहार, जन्मदिन, शादी की सालगिरहा सहित अन्य पर्वो में मैसेज भेज कर अपने दायित्व निभाते हैं। माफी मांगने, किसी अन्य विषय पर चर्चा करने में भी मैसेज का सहारा लेते हैं जिससे रिश्तों में प्यार कम हो जाती है है. ऐसे में पति को अपनी पत्नी से सीधा संवाद कर उनके समस्याओं से अवगत होने के साथ ही अपनी समस्याओं को बताना चाहिए। संवाद करने से दोनों के मध्य मधुर संबंध बढ़ती है साथ ही बच्चों में भी इसका असर होता है। मैसेज तो सिर्फ पत्नी तक ही सीमित रह सकता है। वास्तव में संवाद से बेहतर अन्य कोई तरीका नहीं है, जो अपनी मन की बात को सही ढंग से कह सके। मैसेज में कई शब्द ऐसे होते है, जो दिल को नहीं छुता।

पति-पत्नी अच्छे दोस्त की तरह रहें

अधिकांशत: देखा गया है कि जो दंपत्ति एक-दूसरे को अच्छा दोस्त मानते हैं वह अपनी वैवाहिक जिंदगी में अन्य के अपेक्षा कहीं अधिक संतुष्ट जीवन जीते हैं और ऐसा इसलिये भी होता है कि एक   व्यक्ति अपनी हर परेशानी, खुशी तथा मन:स्थिति की भाव को अपने दोस्त से ही कह सकता है, जिसे वह अन्य किसी से कहना पसंद नहीं करता है। यदि पति-पत्नी एक-दूसरे को दोस्त की तरह मानते हैं तो दोनों के बीच अच्छी समझदारी हो जायेगी। मजबूत रिश्ते के लिए समय-समय पर अपने जीवनसाथी को जताना भी जरूरी है कि आप उनकी चिन्ता और उन्हें प्यार करते हैं। इस से तलाक की नौबत नहीं आती। 

आपस में सम्मान का भाव रखे

हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अवगुण अथवा कमी अवश्य होता है। यदि आप उसकी कमी को ध्यान देते रहेंगे तथा उनके अच्छाइयों को अनदेखा करते रहेंगे तो निश्चित ही आपके मन में उसके प्रति सम्मान भाव उत्पन्न नहीं होगा। पति-पत्नी के बीच भी ऐसा ही होता है जरूरी नहीं है कि आपका साथी आपके सामान काम कर सके। आपका साथी आपसे शिक्षा, आर्थिक स्थिति या कोई काम में कमजोर हो सकता है अथवा किसी गुण में आपसे कम हो सकते हैं, ऐसे में उनकी अच्छी बातों के लिए उसका सम्मान करते रहना चाहिए। आपके लिए, अपने साथी के सम्मान के लिए केवल इतना ही काफी हो कि उनका ओहदा आपके जीवन में बहुत पवित्र और बड़ा है, आपके जीवनसाथी होने का ओहदा। कुछ लोग केवल अपने द्वारा किये गये कार्य को ही सर्व श्रेष्ठ मानते हैं। अपने साथी को हमेशा यह कहते हुए मिल जायेंगे कि तुमने यह सही नहीं किया, ऐसा नहीं वैसा करना चाहिए था। तुम मेरे बात को समझते ही नहीं हो। जबकि वह यह जानने का प्रयास ही नहीं करते कि उसके साथी ने किस उद्देश्य से उक्त कार्य को किया है, उसके मन की स्थिति क्या थी जब वह काम कर रहा था। हो सकता है वह मन में अपने साथी के प्रति अच्छी भावना से उक्त कार्य को किया हो। इसके बावजूद भी जब उसके अपने साथी के द्वारा उसे उलहाने सुनने पड़ते हैं तो उसकी मन टूट जाता है। ऐसे में वह बिल्कुल अकेला  महसूस करता है। शायद भी एक कारण है पति-पत्नी के रिश्तों में दूरी लाना। इसलिये एक-दूसरे के द्वारा किये गये कार्यों को पहले समझने की कोशिश करों कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, इससे क्या लाभ होगा। यदि इतना ही समझ गये तो शायद पति-पत्नी के मध्य उत्पन्न हो रही दूरी की कम किया जा सकता है।

एक-दूसरे के मन से प्रेम करें

हमेशा पति-पत्नी सुंदर रूप वाले नहीं मिलते। कुछ मामलों में या तो पुरूष अधिक सुंदर होता है या स्त्री। ऐसी में अपने साथी के रूप को ध्यान न देकर उनके मन को समझकर उससे प्रेम करना चाहिए।  नि:स्वार्थ रूप से उनसे प्रेम करने से एक आदर्श रिश्ता का निर्माण होता है। एक आदर्श रिश्ता वह है जब आप अपनी कोई भी जरूरत अपने साथी की सहमति से ही पूरी करते हों। जब आप अपने स्वार्थ से पहले अपने साथी की इच्छाओं को महत्व देते हो। आपके रिश्ते में सब्र का होना एक आदर्श रिश्ते की पहचान है। सब्र ही सभी समस्याओं का हल क्योंकि पति-पत्नी के मध्य में वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। आपने देखा होगा भगवान ने हर प्राणी की जोड़ी बनायी है, चाहे पशु-पक्षी हो या कोई भी जानवर, कीट या जन्तु, सभी जोड़ी में मिलते हैं। 

आप जानते ही हो कि एक बैलगाड़ी में दो बैल बंधे होते हैं, जब दोनों एक ही स्थान पर खाना खाने आते हैं तो उसमें से ज्याद ताकतवर बैल अपने से कमजोर बैल को मारकर, डराकर उसके हिस्से की खाना को भी खा जाता है। किन्तु कम ताकत वाले बैल धीर(सब्र) से खड़ा रहता है और ताकतवर बैल अपने पेट के भरते तक खा लेता है तब कमजोर बैल खाना प्रारंभ करता है। किन्तु जब दोनों बैल को बाहर अलग-अलग जगह पर छोड़ दिया जाता है तो दोनों बैल एक दूसरे को ढूंढकर एक साथ घर वापस आते हैं। यह तो जानवरों का प्रेम है, जिससे इंसानों को सीख लेना चाहिए। 

इसी प्रकार पति-पत्नी में एक अधिक चंचल, बातूनी या स्वंतत्र मानसिकता की होती है जबकि दूसरा उससे किसी न किसी मामले में कम होता है। यह किसी मानव के द्वारा बनाया गया जोड़ी नहीं होती यह तो भगवान के द्वारा बनाया जाता है और ऐसा इसलिये बनाया जाता है कि एक यदि किसी चीज में आगे रहेगा तो दूसरा उसे संभाल लेगा, जिससे दोनों के मध्य आपसी सामंजस्य बना रहेगा। इस रचना को हमें बिगाड़ना नहीं चाहिए। भगवान के बनाये हुए रिश्ते को जहाँ तक हो सके हमें सहज कर संभालकर पूरा निभाना चाहिए। हाँ कुछ ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो पति-पत्नी को अलग कर देता है, किन्तु ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से पहले ही उसका समाधान कर लिया जाना चाहिए।


आरोप-प्रत्यारोप से बचे

अधिकांशत: देखा जाता है कि लोग दूसरी की गलती को ज्यादा ध्यान देते हैं और उसकी गलती को सुधारने की बजाय उसे तरह-तरह का ताना मारकर मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। ऐसे ही पति-पत्नी के रिश्तों में भी होता है। पति अथवा पत्नी के द्वारा छोटी-बड़ी गलती (दोष) को अपने साथी के ऊपर मढ़ देते हैं और यह नहीं सोचते कि उक्त गलती के लिये वह भी जिम्मेदार है। चाहे कठिन से कठिन परिस्थिति हो आप किसी भी छोटी या बड़ी गलती होने पर अपने साथी पर पूरा दोष नहीं मढ़ते हो और खुद भी उस स्थिति के लिए अपनी जिम्मेदारी लेते हो, आप खुद यह सोचते हो कि आपसे कोई कमी कहाँ पर हुई है और उसे सुधारने की पहल करते हो तब आपका रिश्ता आदर्श है। इस प्रकार के आदर्श रिश्ते को चाहें कितने लोग तोड़ने का प्रयास करें नहीं टूट सकता। किन्तु यदि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप   लगाने वाले जीवन साथी है तो उनका रिश्ता एक कच्चे धागा के सामान होता है, जिसे कोई भी व्यक्ति आसानी से उलझा सकता है अथवा रिश्तों को तोड़ सकता है। ऐसे में अपने आत्म शक्ति को केन्द्रित कर सहन शक्ति को बढ़ाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि कहीं कोई गलती या दोष नहीं होगा, हो सकता है कि आपका साथी हर रोज आपके इच्छानुसार कार्य न कर पाये। हो सकता है कि वह अच्छा सोचकर कार्य करता हो किन्तु उसका कार्य आपको पसंद न आये। सभी व्यक्ति की विचार धारा अलग-अलग होती है। आप विश्चास नहीं करेंगे कि अलग-अलग मनुष्य की विचारधार भिन्न-भिन्न तो होती ही है किन्तु आपका स्वयं की विचारधारा अलग-अलग समय में अलग-अलग हो सकती है। कुछ ही देर पहले आप सोचेंगे कि मैं अपने परिवार के खुशहाली के लिये ऐसा करूंगा उसके कुछ समय बाद ही आप अन्य विषय पर सोचने लग जायेंगे। जब एक व्यक्ति का ही विचारधारा समय के अनुसार परिवर्तित होते रहता है तो क्या आपके साथी के विचारधारा में परिवर्तन नहीं आ सकता। अवश्य ही विचारधारा परिवर्तित हो सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय लेने से पहले आपकों अपने साथी, अपने बच्चे, अपने परिवार के बारे में एक बार सोचने की आवश्यकता होगी। एक आदर्श पति-पत्नी के रिश्ते में साथी एक-दूसरे की सोच का अनादर नहीं करते, न ही पति अपने पति होने के कारण अपनी पत्नी पर अपनी इच्छाएं थोपते हैं। वे अपनी पत्नी को अपने बराबरी पर रखते हैं और अपनी पत्नी को उनकी सोच के आधार पर व्यवहार करने की छूट देते हुए उनका साथ देते हैं। किन्तु आज कल इस तरह का आचरण पत्नियों में कम दिखायी देती है। पत्नी केवल यह सोचती है कि मेरे पति मेरे बात माने, मेरी ईच्छा अनुसार कार्य करें। शायद यहीं कारण है कि वर्तमान में पति-पत्नी का रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पा रहा है। यहां तक जो लोग प्रेम विवाह किये है वह भी विवाह के कुछ दिनों बाद तलाक ले लेते हैं। कई मामलों में तो देखा गया है कि 25-30 वर्ष एक साथ रहने, बच्चों के जन्म हो जाने के बाद भी तलाक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। क्या ऐसे पति-पत्नी को तलाक लेने अथवा एक-दूसरे अलग होने के पूर्व अपने बच्चों के भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिए। उनके अलग हो जाने से बच्चों पर क्या असर पड़ेगा यह सोचना अति आवश्यक है, क्योंकि पति-पत्नी के अलग हो जाने से बच्चें अधूरा हो जाते हैं, उन्हें या तो माँ का अथवा पिता का प्यार से वंचित होना पड़ता है और यह कमी उन्हें अपने जीवन भर खलती है, जो उनके लिये अपूर्णीय क्षति है। 

सहयोग के भावना से घर चलाये

एक आदर्श पति-पत्नी किसी भी काम का बोझ सिर्फ अपने साथी पर नहीं डालते। एक-दूसरे के हर काम में सहयोग करते हुए जीवन-यापन करते हैं। वहीं कुछ ऐसे पति-पत्नी है जो अपनी काम को भी अपनी साथी को करने के लिये कहते हैं। वर्तमान में ऐसे कई घरों में देखने को मिल जाता है। 

क्रोध पर रखें नियंत्रण

घर में चाहे दो सदस्य हो या अधिक कोई आपके इच्छा अनुसार कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि उनकी भी स्वयं की कुछ ईच्छा होती है। जब कोई सदस्य आपके ईच्छा अनुसार कार्य नहीं करता है तो मन क्रोधित हो जाता है और क्रोधित अवस्था में हम अपने साथी को ऐसा कुछ कह जाते हैं जो हमें नहीं कहना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है कि वह सामने वाले के छोटी-छोटी गलतियों को लेकर अधिक क्रोधित हो जाते हैं। कई लोग तो ऐसे होते हैं कि वह अपनी साथी के मन:स्थिति को समझने का प्रयास भी नहीं करते और कई ऐसे होते हैं कि वह अपनी साथी की गलती को माफ भी नहीं करतें। क्या यह सही है? क्रोध ऐसा आग है जो आपके विपक्षी को तो जलायेगा ही साथ ही वह आपकों भी पूरी तरह से जलाकर खाक कर देगा। जिस परिवार में अधिक क्रोधी लोग रहते हैं वह परिवार ज्यादा दिनों तक नहीं चलता, टूट कर बिखर जाता है। ऐसे में अपनी साथी के क्रोधी स्वभाव को जानते हुए दूसरे साथी को शांत रहना चाहिए। किसी भी समस्या का समाधान शांत होकर किया जा सकता है, उत्तेजना, आवेश अथवा क्रोध से नहीं। आर्दश रिश्ता बनाने के लिये क्रोध को नियंत्रित करना उतना ही आवश्यक है जितना जीने के लिये भोजन आवश्यक है।

परिवार संवेदनाओं के तारों से बुने जाते हैं। जिस परिवार के सदस्यों के मध्य यह भावनात्मक धागा मजबूत होती है, वह परिवार उतना ही सुखी, खुशहाल व समृद्ध होता है। परिवार को जोड़े रखने के लिए इन्हीं संवेदनशील धागों की जरूरत पड़ती है। ये जितने मजबूत होते हंै परिवार का वातावरण उतना ही खुशहाल होता और वे जितने कमजोर होते हैं, पारिवारिक वातावरण उतना ही असहज होता है। परिवार में संवेदना के इन तारों को जोड़े रखना, परिवार के महिलाओं की जिम्मेदारी हुआ करती है। ऐसे यह कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है कि महिलाएॅ परिवार की रीढ़ की हड्डी है। चूंकि कुछ वर्षों पूर्व महिलाओं का काम केवल घर संभालना होता था परन्तु वर्तमान की कामकाजी महिलाओं के लिए ऐसा करना एक चुनौती बन गया है। जो महिलाए रिश्तों की अहमियत को समझती है, भावनात्मक मूल्यों को सर्वाेपरि रखती है, वे घर को एक सूत्र में पिरोये रखती है। जबकि अन्य को ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पाता और उसके आचरण में बदलाव आ जाता है, जिसका प्रभाव नौकरी पर या फिर रिश्तों पर  पड़ता है। ऐसे में परिवार में कलह, क्लेश उत्पन्न हो जाता है और विवाद की स्थिति प्रतिदिन बनती   रहती है।