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रविवार, 15 अगस्त 2021

पति -पत्नी के बिगड़ते रिश्तों से बच्चों पर पड़ता है कुप्रभाव

वर्तमान में पति-पत्नी के रिश्तों में ज्यादा खटास देखने को मिल रहा है। ऐसे में परिवार खुशहाल जिन्दगी व्यतीत करने के बजाय अपनी दाम्पत्य जीवन को बचाने के लिये अधिकांश समय परेशान रहते हैं। पति-पत्नी के बिगड़ते रिश्तों की वजह से बच्चों व बड़े बुजुर्गों के समक्ष भी कई प्रकार की समस्याए उत्पन्न हो जा रही है। पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट आने का मुख्य कारण यह भी है कि लोग भारतीय संस्कृति एवं अपनी जिम्मेदारियों को भूलकर स्वच्छंद एवं स्वतंत्र जीवन जीने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। कुछ हद तक तो यह सही है कि व्यक्ति को स्वच्छंद एवं स्वतंत्र जीवन जीना चाहिए किन्तु उसमें भी परिवार के प्रति कुछ जिम्मेदारी है। परिवार को सुखपूर्वक रखने एवं खुशहाल जीवन के लिये पति-पत्नी सहित परिवार के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझे और उसके अनुरूप कार्य करें। किन्तु इस आधुनिक युग में लोग केवल अपने निजी स्वार्थ के लिये ही अपने ही परिजनों का अहित करने में लगे हुए हैं। क्या यह गलत नहीं है कि अपनी कुछ स्वार्थ सिद्धि के लिये अपने ही पति, माता, पिता, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री सहित अन्य परिजनों को नुकसान पहुंच रहे हैं?

यदि हम अपने परिवार के सदस्यों की बातों को समझे, उसकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करें, उनकी परेशानी को दूर करने में पहल करें तो निश्चित ही हम अपने परिवार के सभी सदस्य को एक साथ एक ही घर में रख सकते हैं। खासकर पति और पत्नी की रिश्तों में किसी भी प्रकार की मनमुटाव, बच्चों पर विपरीत प्रभाव डालती है। ऐसे में पति-पत्नी को आपसी समझदारी से एक-दूसरे के भावनाओं को समझने की आवश्यकता होती है। मैंने देखा है कि कई दम्पत्ति 30-35 साल दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने के बाद भी एक-दूसरे से तलाक ले लेते हैं। ऐसे में वह यह नहीं सोचते कि पति-पत्नी के अलग हो जाने से बच्चों के पर क्या असर पड़ेगा? उनका भविष्य कैसा होगा? निश्चित ही यह सोचने वाली बात है कि यदि किसी बच्चे के माँ और पिता अलग-अलग रहे तो उसे अधूरापन लगेगा। आप अपने पुत्र या पुत्री के बचपन के समय को याद करें जब वह बहुत छोटा था या मात्र 2-3 वर्ष का था तब वह माता के द्वारा डाटे जाने पर अपने पिता के पास जाकर अपनी बात कहता था और पिता के डाटने पर माता के पास जाकर पिता का शिकायत करता था। उस समय तो उसकी मन:स्थिति बचपन की थी। किन्तु वह बड़े होने पर भी इसी प्रकार का व्यवहार करता है। यदि किसी समस्या में पड़ जाता है जिसे वह  पिता से नहीं कह सकता उसे माँ के पास जाकर बड़ी ही सरलता से कह देता है। इसी प्रकार किसी चीज की आवश्कता पड़ने पर वह अपने पिता को उसे पूरा करने के लिये कहता है। ऐसे में पति और पत्नी को अपनी मन को शांत रखकर अति महत्वाकांक्षा को मार कर बच्चों के खुशहला जिन्दगी के लिये एक-दूसरे का साथ जीवनभर देना चाहिए। 

पत्नी की उम्मीद रहती है कि पति बिना कहे उनकी बातें समझे

पति-पत्नी का रिश्ता सबसे मजबूत कहा जाता है। ऐसे मेंं महिलाएं भले ही अभिव्यक्त न करें, लेकिन वे उम्मीद करती हैं कि उनके पति उन्हें समझें और उनका साथ दें। पति-पत्नी के बीच का रिश्ता ऐसा होता है कि वह एक-दूसरे की भावनाएं बिना कहे ही समझ जाते हैं। शादी के बाद ज्यादातर रिश्तों में कड़वाहट तब आती है, जब कपल एक-दूसरे के लिए समय निकालना कम कर देते हैं।  कई बार वह घर पर होकर भी मोबाइल में भिड़े रहते हैं। जबकि पत्नी को आॅफिस के साथ ही घर भी देखना होता है।अगर पत्नी हाउस गृहणी है, तो भी उसके पास घर से जुड़े कई काम होते हैं, जिनमें पूरा दिन चला जाता है। इस स्थिति में पति भी उन्हें समय न दे, तो उन्हें महसूस होता है कि वह एक कर्मचारी हैं, जो अपनी जिम्मेदारी निभाए जा रही हैं। ऐसे में पति को पत्नी अनदेखा नहीं करना चाहिए। क्योंकि पत्नी जो कर रही हैं, वह आपके और घर के लिए ही है। वह आपसे प्यार करती हैं इसलिए बदले में अच्छी देखभाल और प्यार की उम्मीद करती हैं। अगर उन्हें यह महसूस ही नहीं होगा, तो वह खुश नहीं रह सकेंगीं। जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है। छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना होता है। 

पति-पत्नी के रिश्तों को मजबूत करने, आपस में विश्वास बढ़ाने करें यह उपाय :-

मैसेज की अपेक्षा पत्नी से करें सीधा संवाद 

दंपत्ति जीवन के छोटे-बड़े पलों जैसे त्यौहार, जन्मदिन, शादी की सालगिरहा सहित अन्य पर्वो में मैसेज भेज कर अपने दायित्व निभाते हैं। माफी मांगने, किसी अन्य विषय पर चर्चा करने में भी मैसेज का सहारा लेते हैं जिससे रिश्तों में प्यार कम हो जाती है है. ऐसे में पति को अपनी पत्नी से सीधा संवाद कर उनके समस्याओं से अवगत होने के साथ ही अपनी समस्याओं को बताना चाहिए। संवाद करने से दोनों के मध्य मधुर संबंध बढ़ती है साथ ही बच्चों में भी इसका असर होता है। मैसेज तो सिर्फ पत्नी तक ही सीमित रह सकता है। वास्तव में संवाद से बेहतर अन्य कोई तरीका नहीं है, जो अपनी मन की बात को सही ढंग से कह सके। मैसेज में कई शब्द ऐसे होते है, जो दिल को नहीं छुता।

पति-पत्नी अच्छे दोस्त की तरह रहें

अधिकांशत: देखा गया है कि जो दंपत्ति एक-दूसरे को अच्छा दोस्त मानते हैं वह अपनी वैवाहिक जिंदगी में अन्य के अपेक्षा कहीं अधिक संतुष्ट जीवन जीते हैं और ऐसा इसलिये भी होता है कि एक   व्यक्ति अपनी हर परेशानी, खुशी तथा मन:स्थिति की भाव को अपने दोस्त से ही कह सकता है, जिसे वह अन्य किसी से कहना पसंद नहीं करता है। यदि पति-पत्नी एक-दूसरे को दोस्त की तरह मानते हैं तो दोनों के बीच अच्छी समझदारी हो जायेगी। मजबूत रिश्ते के लिए समय-समय पर अपने जीवनसाथी को जताना भी जरूरी है कि आप उनकी चिन्ता और उन्हें प्यार करते हैं। इस से तलाक की नौबत नहीं आती। 

आपस में सम्मान का भाव रखे

हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अवगुण अथवा कमी अवश्य होता है। यदि आप उसकी कमी को ध्यान देते रहेंगे तथा उनके अच्छाइयों को अनदेखा करते रहेंगे तो निश्चित ही आपके मन में उसके प्रति सम्मान भाव उत्पन्न नहीं होगा। पति-पत्नी के बीच भी ऐसा ही होता है जरूरी नहीं है कि आपका साथी आपके सामान काम कर सके। आपका साथी आपसे शिक्षा, आर्थिक स्थिति या कोई काम में कमजोर हो सकता है अथवा किसी गुण में आपसे कम हो सकते हैं, ऐसे में उनकी अच्छी बातों के लिए उसका सम्मान करते रहना चाहिए। आपके लिए, अपने साथी के सम्मान के लिए केवल इतना ही काफी हो कि उनका ओहदा आपके जीवन में बहुत पवित्र और बड़ा है, आपके जीवनसाथी होने का ओहदा। कुछ लोग केवल अपने द्वारा किये गये कार्य को ही सर्व श्रेष्ठ मानते हैं। अपने साथी को हमेशा यह कहते हुए मिल जायेंगे कि तुमने यह सही नहीं किया, ऐसा नहीं वैसा करना चाहिए था। तुम मेरे बात को समझते ही नहीं हो। जबकि वह यह जानने का प्रयास ही नहीं करते कि उसके साथी ने किस उद्देश्य से उक्त कार्य को किया है, उसके मन की स्थिति क्या थी जब वह काम कर रहा था। हो सकता है वह मन में अपने साथी के प्रति अच्छी भावना से उक्त कार्य को किया हो। इसके बावजूद भी जब उसके अपने साथी के द्वारा उसे उलहाने सुनने पड़ते हैं तो उसकी मन टूट जाता है। ऐसे में वह बिल्कुल अकेला  महसूस करता है। शायद भी एक कारण है पति-पत्नी के रिश्तों में दूरी लाना। इसलिये एक-दूसरे के द्वारा किये गये कार्यों को पहले समझने की कोशिश करों कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, इससे क्या लाभ होगा। यदि इतना ही समझ गये तो शायद पति-पत्नी के मध्य उत्पन्न हो रही दूरी की कम किया जा सकता है।

एक-दूसरे के मन से प्रेम करें

हमेशा पति-पत्नी सुंदर रूप वाले नहीं मिलते। कुछ मामलों में या तो पुरूष अधिक सुंदर होता है या स्त्री। ऐसी में अपने साथी के रूप को ध्यान न देकर उनके मन को समझकर उससे प्रेम करना चाहिए।  नि:स्वार्थ रूप से उनसे प्रेम करने से एक आदर्श रिश्ता का निर्माण होता है। एक आदर्श रिश्ता वह है जब आप अपनी कोई भी जरूरत अपने साथी की सहमति से ही पूरी करते हों। जब आप अपने स्वार्थ से पहले अपने साथी की इच्छाओं को महत्व देते हो। आपके रिश्ते में सब्र का होना एक आदर्श रिश्ते की पहचान है। सब्र ही सभी समस्याओं का हल क्योंकि पति-पत्नी के मध्य में वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। आपने देखा होगा भगवान ने हर प्राणी की जोड़ी बनायी है, चाहे पशु-पक्षी हो या कोई भी जानवर, कीट या जन्तु, सभी जोड़ी में मिलते हैं। 

आप जानते ही हो कि एक बैलगाड़ी में दो बैल बंधे होते हैं, जब दोनों एक ही स्थान पर खाना खाने आते हैं तो उसमें से ज्याद ताकतवर बैल अपने से कमजोर बैल को मारकर, डराकर उसके हिस्से की खाना को भी खा जाता है। किन्तु कम ताकत वाले बैल धीर(सब्र) से खड़ा रहता है और ताकतवर बैल अपने पेट के भरते तक खा लेता है तब कमजोर बैल खाना प्रारंभ करता है। किन्तु जब दोनों बैल को बाहर अलग-अलग जगह पर छोड़ दिया जाता है तो दोनों बैल एक दूसरे को ढूंढकर एक साथ घर वापस आते हैं। यह तो जानवरों का प्रेम है, जिससे इंसानों को सीख लेना चाहिए। 

इसी प्रकार पति-पत्नी में एक अधिक चंचल, बातूनी या स्वंतत्र मानसिकता की होती है जबकि दूसरा उससे किसी न किसी मामले में कम होता है। यह किसी मानव के द्वारा बनाया गया जोड़ी नहीं होती यह तो भगवान के द्वारा बनाया जाता है और ऐसा इसलिये बनाया जाता है कि एक यदि किसी चीज में आगे रहेगा तो दूसरा उसे संभाल लेगा, जिससे दोनों के मध्य आपसी सामंजस्य बना रहेगा। इस रचना को हमें बिगाड़ना नहीं चाहिए। भगवान के बनाये हुए रिश्ते को जहाँ तक हो सके हमें सहज कर संभालकर पूरा निभाना चाहिए। हाँ कुछ ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो पति-पत्नी को अलग कर देता है, किन्तु ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से पहले ही उसका समाधान कर लिया जाना चाहिए।


आरोप-प्रत्यारोप से बचे

अधिकांशत: देखा जाता है कि लोग दूसरी की गलती को ज्यादा ध्यान देते हैं और उसकी गलती को सुधारने की बजाय उसे तरह-तरह का ताना मारकर मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। ऐसे ही पति-पत्नी के रिश्तों में भी होता है। पति अथवा पत्नी के द्वारा छोटी-बड़ी गलती (दोष) को अपने साथी के ऊपर मढ़ देते हैं और यह नहीं सोचते कि उक्त गलती के लिये वह भी जिम्मेदार है। चाहे कठिन से कठिन परिस्थिति हो आप किसी भी छोटी या बड़ी गलती होने पर अपने साथी पर पूरा दोष नहीं मढ़ते हो और खुद भी उस स्थिति के लिए अपनी जिम्मेदारी लेते हो, आप खुद यह सोचते हो कि आपसे कोई कमी कहाँ पर हुई है और उसे सुधारने की पहल करते हो तब आपका रिश्ता आदर्श है। इस प्रकार के आदर्श रिश्ते को चाहें कितने लोग तोड़ने का प्रयास करें नहीं टूट सकता। किन्तु यदि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप   लगाने वाले जीवन साथी है तो उनका रिश्ता एक कच्चे धागा के सामान होता है, जिसे कोई भी व्यक्ति आसानी से उलझा सकता है अथवा रिश्तों को तोड़ सकता है। ऐसे में अपने आत्म शक्ति को केन्द्रित कर सहन शक्ति को बढ़ाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि कहीं कोई गलती या दोष नहीं होगा, हो सकता है कि आपका साथी हर रोज आपके इच्छानुसार कार्य न कर पाये। हो सकता है कि वह अच्छा सोचकर कार्य करता हो किन्तु उसका कार्य आपको पसंद न आये। सभी व्यक्ति की विचार धारा अलग-अलग होती है। आप विश्चास नहीं करेंगे कि अलग-अलग मनुष्य की विचारधार भिन्न-भिन्न तो होती ही है किन्तु आपका स्वयं की विचारधारा अलग-अलग समय में अलग-अलग हो सकती है। कुछ ही देर पहले आप सोचेंगे कि मैं अपने परिवार के खुशहाली के लिये ऐसा करूंगा उसके कुछ समय बाद ही आप अन्य विषय पर सोचने लग जायेंगे। जब एक व्यक्ति का ही विचारधारा समय के अनुसार परिवर्तित होते रहता है तो क्या आपके साथी के विचारधारा में परिवर्तन नहीं आ सकता। अवश्य ही विचारधारा परिवर्तित हो सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय लेने से पहले आपकों अपने साथी, अपने बच्चे, अपने परिवार के बारे में एक बार सोचने की आवश्यकता होगी। एक आदर्श पति-पत्नी के रिश्ते में साथी एक-दूसरे की सोच का अनादर नहीं करते, न ही पति अपने पति होने के कारण अपनी पत्नी पर अपनी इच्छाएं थोपते हैं। वे अपनी पत्नी को अपने बराबरी पर रखते हैं और अपनी पत्नी को उनकी सोच के आधार पर व्यवहार करने की छूट देते हुए उनका साथ देते हैं। किन्तु आज कल इस तरह का आचरण पत्नियों में कम दिखायी देती है। पत्नी केवल यह सोचती है कि मेरे पति मेरे बात माने, मेरी ईच्छा अनुसार कार्य करें। शायद यहीं कारण है कि वर्तमान में पति-पत्नी का रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पा रहा है। यहां तक जो लोग प्रेम विवाह किये है वह भी विवाह के कुछ दिनों बाद तलाक ले लेते हैं। कई मामलों में तो देखा गया है कि 25-30 वर्ष एक साथ रहने, बच्चों के जन्म हो जाने के बाद भी तलाक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। क्या ऐसे पति-पत्नी को तलाक लेने अथवा एक-दूसरे अलग होने के पूर्व अपने बच्चों के भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिए। उनके अलग हो जाने से बच्चों पर क्या असर पड़ेगा यह सोचना अति आवश्यक है, क्योंकि पति-पत्नी के अलग हो जाने से बच्चें अधूरा हो जाते हैं, उन्हें या तो माँ का अथवा पिता का प्यार से वंचित होना पड़ता है और यह कमी उन्हें अपने जीवन भर खलती है, जो उनके लिये अपूर्णीय क्षति है। 

सहयोग के भावना से घर चलाये

एक आदर्श पति-पत्नी किसी भी काम का बोझ सिर्फ अपने साथी पर नहीं डालते। एक-दूसरे के हर काम में सहयोग करते हुए जीवन-यापन करते हैं। वहीं कुछ ऐसे पति-पत्नी है जो अपनी काम को भी अपनी साथी को करने के लिये कहते हैं। वर्तमान में ऐसे कई घरों में देखने को मिल जाता है। 

क्रोध पर रखें नियंत्रण

घर में चाहे दो सदस्य हो या अधिक कोई आपके इच्छा अनुसार कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि उनकी भी स्वयं की कुछ ईच्छा होती है। जब कोई सदस्य आपके ईच्छा अनुसार कार्य नहीं करता है तो मन क्रोधित हो जाता है और क्रोधित अवस्था में हम अपने साथी को ऐसा कुछ कह जाते हैं जो हमें नहीं कहना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है कि वह सामने वाले के छोटी-छोटी गलतियों को लेकर अधिक क्रोधित हो जाते हैं। कई लोग तो ऐसे होते हैं कि वह अपनी साथी के मन:स्थिति को समझने का प्रयास भी नहीं करते और कई ऐसे होते हैं कि वह अपनी साथी की गलती को माफ भी नहीं करतें। क्या यह सही है? क्रोध ऐसा आग है जो आपके विपक्षी को तो जलायेगा ही साथ ही वह आपकों भी पूरी तरह से जलाकर खाक कर देगा। जिस परिवार में अधिक क्रोधी लोग रहते हैं वह परिवार ज्यादा दिनों तक नहीं चलता, टूट कर बिखर जाता है। ऐसे में अपनी साथी के क्रोधी स्वभाव को जानते हुए दूसरे साथी को शांत रहना चाहिए। किसी भी समस्या का समाधान शांत होकर किया जा सकता है, उत्तेजना, आवेश अथवा क्रोध से नहीं। आर्दश रिश्ता बनाने के लिये क्रोध को नियंत्रित करना उतना ही आवश्यक है जितना जीने के लिये भोजन आवश्यक है।

परिवार संवेदनाओं के तारों से बुने जाते हैं। जिस परिवार के सदस्यों के मध्य यह भावनात्मक धागा मजबूत होती है, वह परिवार उतना ही सुखी, खुशहाल व समृद्ध होता है। परिवार को जोड़े रखने के लिए इन्हीं संवेदनशील धागों की जरूरत पड़ती है। ये जितने मजबूत होते हंै परिवार का वातावरण उतना ही खुशहाल होता और वे जितने कमजोर होते हैं, पारिवारिक वातावरण उतना ही असहज होता है। परिवार में संवेदना के इन तारों को जोड़े रखना, परिवार के महिलाओं की जिम्मेदारी हुआ करती है। ऐसे यह कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है कि महिलाएॅ परिवार की रीढ़ की हड्डी है। चूंकि कुछ वर्षों पूर्व महिलाओं का काम केवल घर संभालना होता था परन्तु वर्तमान की कामकाजी महिलाओं के लिए ऐसा करना एक चुनौती बन गया है। जो महिलाए रिश्तों की अहमियत को समझती है, भावनात्मक मूल्यों को सर्वाेपरि रखती है, वे घर को एक सूत्र में पिरोये रखती है। जबकि अन्य को ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पाता और उसके आचरण में बदलाव आ जाता है, जिसका प्रभाव नौकरी पर या फिर रिश्तों पर  पड़ता है। ऐसे में परिवार में कलह, क्लेश उत्पन्न हो जाता है और विवाद की स्थिति प्रतिदिन बनती   रहती है। 

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

विभिन्न रोगों से दूर रखता है खुशहाल जिन्दगी

एक खुशहाल, लचीला और आशावादी जीवन जीना अद्भुत है और आपके स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। वास्तव में खुश रहना आपको जीवन के तनावों से बचाता है। तनाव, हृदय रोग, कैंसर और स्ट्रोक जैसी मृत्यु के शीर्ष कारणों से जुड़ा हुआ है। एक खुश व्यक्ति अन्य लोगों को भी खुशी का अहसास करा सकता है। जबकि एक अशांत व्यक्ति कई लोगों को अशांत कर सकता है। इसलिये सभी को हमेशा खुश रहने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में हमेशा एक समान परिस्थिति नहीं रहती है। मन:स्थिति भी समय के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। इसलिये सभी को विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मन को शांत रखकर सामान्य व्यवहार करना चाहिए।  हमारे पास आवश्यक बदलाव करने की शक्ति है, यदि हम चाहे तो असहनीय स्थिति में भी हम एकांत महसूस कर अपने मन को शांत कर सकते हैं। 

नए लोग जीवन में हर पल मिलते हैं और विभिन्न प्रकार की बातें कहते हैं; आपको अपना सबसे अच्छा दोस्त होने का एहसास दिलाता है, लेकिन जब आपकों उनकी मदद की जरूरत होती है, तब आपका सबसे अच्छा दोस्त या लोग आपकी दयनीय स्थिति पर ही छोड़ देते हैं। यह एक कड़वा सच है कि बुरे समय के दौरान कोई भी व्यक्ति आपका मदद नहीं करता है। केवल दो लोग आपकी मदद कर सकते हैं, पहला आप स्वयं और दूसरा भगवान। भगवान भी आपकी मदद तभी करेंगे जब आप खुद की मदद करने के लिए तैयार होंगे। जब तक आप अपनी समस्याओं का हल करने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक भगवान आपकी मदद करने के लिए कोई पहल नहीं करेगा। आप सकारात्मक सोच के साथ कार्य करेंगे तो किसी समस्या से निजात पाकर खुशहाल जिन्दगी पा सकते हैं। आपके सकारात्मक सोच के कारण ही भगवान भी आपकी मदद करने के लिए अपने हाथ बढ़ाने लगते हैं और कुछ ही समय में सभी परेशानी, समस्या, उदासी खत्म हो जाती है। यह भी सच है कि आपके परिवार के सभी सदस्य तभी खुश होंगे जब आप खुद खुश होंगे। मुझे यकीन है कि आप अपने भविष्य को सुनहरा बनाने और सकारात्मक सोच के साथ अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास करेंगे।

खुशहाल जिन्दगी पाने के तरीके

खुशी वास्तव में सभी में पायी जाती है, यह जीवन को अधिक अद्भुत और स्वस्थ बनाने का एक तरीका है। खुश रहना अपेक्षाकृत आसान है, बस खुश रहने का फैसला कर ले। कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि ज्यादातर खुश लोग, तनावग्रस्त, परेशान लोगों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह से अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं। जबकि तनावग्रस्त व परेशान लोगों सुस्त हो जाते है तथा प्रत्येक कार्य में अरूचि रखते हैं। कई तरीके हैं जिनके द्वारा आप हमेशा खुश रह सकते हैं। सामाजिक नेटवर्क या रिश्ते खुशी के लिए आवश्यक हैं। खुश रहने के लिये कृतज्ञ होना एक महान दृष्टिकोण है। न जाने कितने लोग हमें खुशी प्रदान करने के लिये दिन-रात मेहनत करते हैं, जैसे हमें सुरक्षित रूप से घर पहुंचाने के लिए टैक्सी चालक, शानदार खाना देने के लिये रसोईया, हमे सुरक्षा प्रदान करने के लिये पुलिसकर्मी सहित हमारे दिनचर्या में अनेक लोग ऐसे हैं जिनके द्वारा हमारी खुशहाल जिन्दगी के लिये मेहनत किया जाता है। यदि हम उन सभी के प्रति उदार भाव से उनका धन्यवाद ज्ञात करें तो वह भी अपने आप खुशी महसूस करेगा। हम प्रतिदिन दैनिक समाचार पत्रों में बुरी खबरों को पढ़कर अपना दिन की शुरूआत करते हैं। बुरी खबरों से दिन की शुरुआत करना समझदारी वाली बात नहीं है। हमें सुबह उठकर सर्वप्रथम जप, प्रार्थना और ध्यान के साथ भगवान को नई सुबह दिखाने के लिये धन्यवाद देते हुए दिन का शुभारंभ करना चाहिए। ऐसा करने से हमारे आंतरिक शांति को बढ़ावा मिलता है। साथ ही अपने समय का प्रबंधन करना आवश्यक है। समय अमूल्य है, समय प्रबंधन को नियमों की एक सूची के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें लक्ष्य निर्धारित करना, योजना बनाना और प्राथमिकता वाले कार्य को सूची बद्ध करना शामिल है।  हंसों और दिल खोलकर हंसो, एक अच्छा मजाक सुनों, अपने दोस्तों या परिवार को इसके बारे में बताओं।  अपने आसपास के लोगों के प्रति अपनी भावनाओं, स्नेह, मित्रता और जुनून को व्यक्त करें। कोशिश करें कि निराशा व गुस्से को दूर रखें। अपने कार्य में मन लगाये, इससे भी आपके अंदर का निराशा दूर होगा। कोशिश करें कि हर रोज कुछ नया सीखें। सीखने से हमें अपने क्षितिज का विस्तार होता है और अपने सीख से हमें भविष्य को बेहतर बनाने का अवसर मिलता है।

निराशा व दुखी का कारण

हम अक्सर केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। हम सोचते हैं कि मैं ऐसा करता तो वैसा हो जाता। अगर केवल मेरे पति ही मेरे लिए अच्छे होते हैं। अगर मुझे एक बेहतर मिल जाता। अगर बच्चे बड़े होते और घर का काम करते इत्यादि।  हम अपने कीमती समय को केवल ‘यदि’ के सपने देखने में बर्बाद कर देते हैं।  इतने सारे लोग इस जाल में पड़ जाते हैं और अपने जीवन का अधिकांश समय दुखी रहते हैं। समस्या यह है कि किसी तरह हमारे पास आने के लिए खुशी की तलाश कर रही हैं और हम उसे अनदेखा करते हैं।  जब खुशी आती है तो ऐसा लगता है कि यह क्षणभंगुर है और जल्दी से गुजर गया। आपको यह बताने का प्रयास किया गया है कि खुशी एक भावना नहीं है, यह जीवन का एक तरीका हो सकता है। यदि आप केवल कुछ बुनियादी सिद्धांतों का पालन करेंगे, तो खुशी दैनिक आधार पर आपकी हो सकती है। सबसे   पहले, आप वर्तमान में रहना सीख लो, कल चला गया है और आने वाला कल हमेशा अच्छा हो इसका वादा नहीं किया जाता है, इसलिए आपको वर्तमान में स्थिति होने की आवश्यकता है। आपको अपनी सोच और अपने दिमाग से गुजरने वाले विचारों को नियंत्रित करना होगा। अक्सर सुनने को मिलता है कि मैं ही सारा काम कर रहा हूँ, मेरे सहयोगी, मेरे पति, मेरे बच्चे, भगवान तथा अन्य लोग मेरी कोई मदद नहीं करते। इस प्रकार की सोच, दूसरों को कोसने की आदत ही दुखी व निराश होने का प्रमुख कारण है। 

खुशी को मन की स्थिति कहा जा सकता है और खुशी का तरीका आपके दिमाग को उसकी उचित स्थिति में ला रहा है। मन में हमेशा साकारात्मक सोच व भगवान पर विश्वास रखे। सोच अच्छी होने पर सारे रास्ते अपने-आप खुल जाते हैं। हालकि कुछ समस्याओं को दूर करने में थोड़ा समय अवश्य लगता है किन्तु आप यदि धैर्य से काम करेंगे तो वह भी आसानी से निकल जाता है। 

धैर्य एवं विश्वास को समझने के लिये सुसंगत कहानी

‘‘एक राजा तीर्थ यात्रा के लिए चले, उनके काफिले में काफी लोग शामिल थे, उनमें ही एक गरीब आदमी भी था, जिसके पास दो धोती और खाने के लिए कुछ आटा ही था। सुबह-सुबह उस गरीब आदमी ने एक आदमी को फटे हुए कपड़ों में हल्की ठंड के कारण कांपते देखा तो अपनी एक धोती उसे दे दी, वह धोती पाकर प्रसन्न हुआ और आशीर्वाद दिया। उस समय ज्येष्ठ आषाढ़ का महीना चलने के कारण दोपहर में कड़ी धूप पड़ती थी। तीर्थ यात्रियों को दोपहर में चलते समय बादलों की छाया रहती थी। सब लोग कहते  राजा साहब धर्मात्मा हैं, इसका ही प्रताप है। राजा ने कहा बात ठीक है, लेकिन न मालूम किसका प्रताप है? एक-एक आदमी चले देखें, बादल किसके साथ चलता है? सब चल पड़े किन्तु जिस गरीब आदमी ने अपनी धोती दान की थी ,वह उस समय सोया रहा। बादल ठहर गया, वह जब उठकर चला तो बादल भी उसके साथ-साथ  आया जिससे यह निश्चित हो गया कि बादल इसी के ऊपर है। उससे पूछा गया कि उसने क्या दान किया है? उसने कहा मैं क्या दान करने लायक हूं? मैं तो आप लोगों का सहारा लेकर आया हूं, मेरे पास चीज ही क्या है, जो दान -धर्म करूं?  तब लोगों ने पूछा घर से क्या लाए थे?  उसने कहा दो धोती और खाने के लिए आठ - दस सेर आटा। फिर लोगों ने पूछा  धोती दो लाए थे अब तो एक ही है, एक कहां गयी?  वह बोला एक आदमी कष्ट पा रहा था, उसे दे दिया। एक महात्मा जी साथ में थे, उन्होंने  कहा एक धोती दान का यह महात्म्य है। राजा ने कहा महाराज! मैं तो लाखों रुपए दान करता हूं। महात्मा ने कहा असल में पुण्य धर्म का लाभ रुपयों के या धन सम्पत्ति के पीछे नहीं है। एक रुपए से जो लाभ  मिल जाता है वह लाखों रुपए में नहीं मिलता। मैौके से हो, अभाव में हो उसका फल अधिक होता है।’’

इस कहानी में जो गरीब व्यक्ति था वह अपने धोती को दान करने के बाद भी खुश था जबकि उसके पास पहनने के लिये केवल एक ही धोती बचा। इसका मतलब है कि हमें अपनी वर्तमान स्थिति में ही खुश रहकर भविष्य को सुनहरा बनाने के लिये प्रयास करते रहना चाहिए। 

स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि -‘‘एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।  कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो। जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे। जब तक जीना, तब तक सीखना व अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं। जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते। जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं। चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो। हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखीये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है झ्र शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो। किसी की निंदा न करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिये।’’

 यदि हम स्वामी विवेकानंद जी के उक्त वक्तव्यों में से किसी एक का भी अनुसरण करते है तब भी हमारी जीवन में खुश का माहौल रहेगा।







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मंगलवार, 26 जनवरी 2021

विवाह में होने वाले फिजूल खर्च पर विचार आवश्यक


हिन्दुओं में विवाह एक प्रकार का संस्कार है, जो पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिये एक समान है। यहाँ विवाह को धार्मिक बंधन एवं कर्तव्य समझा

marriage
जाता है। विवाह का दूसरा अर्थ समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जाने वाला दाम्पत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी होता है। विवाह दो व्यक्तियों (स्त्री व पुरुष) के धार्मिक या कानूनी रूप से एक साथ रहने के लिये प्रदान की जाने वाली सामाजिक मान्यता है। यह मानव समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाये रखने का प्रधान जीव शास्त्री माध्यम भी है। विवाह आजीवन चलने वाला संस्कार है। जिसमें पति-पत्नी का संबंध अटूट होता है। 

लगभग सभी समाजों में विवाह संस्कार कुछ विशिष्ट विधियों के साथ सम्पन्न किया जाता है, जो पति-पत्नी बनने की घोषणा करता है। संबंधियों को विवाह समारोह में बुलाकर उन्हें इस नवीन दाम्पत्य का साक्षी बनाया जाता है। धार्मिक विधियों द्वारा उसे कानूनी मान्यता और सामाजिक सहमति प्रदान की जाती है। विवाह की तैयारी में माता-पिता संतान के पैदा होते ही जुट जाते हैं। यदि परिवार सामर्थवान है तब तो बच्चों के विवाह में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन यदि परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है और यदि उनके यहाॅ बेटियों की संख्या अधिक है तो पालकों का सारा जीवन इस चिन्ता में व्यतीत हो जाता है कि मैं अपने बेटियों का विवाह कैसे करूं? इनकी शादियाॅ किस तरह से व कैसी होगी? समृद्धशाली लोग अपनी मर्जी से वर पक्ष को उपहार स्वरूप अधिक राशि या सामाग्री देकर समाज में अपनी हैसियत का उच्च प्रदर्शन करते है, जिससे उनका रूतबा बना रहें। उच्च वर्ग के इस प्रकार के दिखावटी प्रदर्शन विभिन्न वर्गों के बीच प्रतियोगिता का रूप भी ले लेता है। फिर किसी की बराबरी करने के लिये शादी समारोह में अपना भी रूतबा दिखाने हेतु आर्थिक रूप से कमजोर व मध्यम वर्गीय परिवार कर्जदार भी बन जाते हैं। ग्रामीण अंचल में विवाह में शामिल होने वाले समस्त रिश्तेदारों व परिजनों को कपड़े, साड़ी आदि देने की परम्परा है। गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार की कमर अपनी बेटियों के शादी करने में ही टूट जाती है तथा विवाह हेतु लिये गये कर्ज को पटाने अपनी बाकी जिन्दगी को भी दुश्वार कर देता है। 



शादी-विवाह समारोह में अधिक राशि को पानी की तरह बहाया जाता है। यह अनावश्यक खर्च फिजूल खर्ची की श्रेणी में ही गिना जाता है। वर्तमान में अधिक दान या उपहार देकर भी योग्य वर या वधू पाना दुष्कर है। मैं यह नहीं कह रहा है कि योग्य वर या वधू नहीं मिलेंगे। लेकिन योग्य वर या वधू का अर्थ तभी सार्थक हो सकता है जब दोनों (वर-वधू) मिलकर अपनी जिन्दगी को खुशहाल बनाये और जीवन भर एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देते रहें। यह विचार करने योग्य है कि क्या अधिक राशि या सामाग्री उपहार में देने से वर या वधू का जीवन सुखमय रहेगा। ऐसा नहीं है कई मामलों में अधिक राशि या सामाग्री उपहार देने के बावजूद भी दोनों (वर, वधू) कुछ दिन, कुछ माह या कुछ वर्ष एक साथ निवास करने के पश्चात् पृथक-पृथक रहने लग जाते हैं। ऐसे में आपके द्वारा अधिक उपहार देने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता है। कुछ नवजवानों की यह प्रबल इच्छा होती है कि वह अपने विवाह सेलिब्रेट करेंगे, आतिशबाजियाॅ करेंगे। ऐसे विचार को माॅ-बाप पूरा करने के लिये बच्चों की खुशी के लिये मजबूर हो जाते हैं। क्या यह विचार करने योग्य नहीं है कि हम अपने बच्चों के शादी में जितनी राशि खर्च कर रहे हैं, यदि उतनी राशि का उपयोग उनके स्वावलंबी बनने, जीवन निर्माण करने तथा भविष्य को सुनहरा बनाने में उपयोग करें तो ज्यादा सार्थक होगा?

फिजूल खर्च से बचने आदर्श विवाह एक विकल्प

क्या आप जानते हैं कि आपके द्वारा फिजूल खर्च किये जाने से स्वयं का धन ही नहीं अपितु देश की सम्पदा का भी व्यर्थ उपयोग होता है? वहीं बड़े-बड़े विवाह समारोह के आयोजन से बहुत सारी परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। स्वयं एवं देश की सम्पदा को फिजूल खर्च से बचाने के लिये एक आसान तरीका है आदर्श विवाह’ हाॅ, आदर्श विवाह एक ऐसा विवाह है जिसमें आप कम खर्च में भी अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह कर सकते हैं। साथ ही विवाह की तैयारी में लगने वाले श्रम, समय सहित अन्य परेशानियों से भी छुटकारा पा सकते हैं। आदर्श विवाह वर-वधू के परिवारों की आपसी समझदारी, रजामंदी एवं सामंजस्य से सादगी पूर्ण तरीके से बिना दान-उपहार, बिना दिखावटीपन व कुछ ही समय में सम्पन्न कराया जा सकता है। इस विवाह का फायदा अनावश्यक खर्चों की बचत करना है। समाज में फैली कुरीतियाॅ जड़े जमायी हुई, जिनको न करने पर हमें कोई नुकसान नहीं होने वाला, फिर भी परम्परा को ध्यान में रखते हुए उनको जगह देते जाते हैं। उन कुरीतियों को समाप्त करने के लिये ‘आदर्श विवाह’ आवश्यक है। इस तरह आदर्श विवाह खर्चीली शादी, फिजूल खर्च, दहेज प्रथा व अनेक कुरीतियों या प्रथाओं को खत्म करने का सशक्त माध्यम है। 

क्या है आदर्श विवाह?

आदर्श विवाह आपके रीति रिवाज एवं परम्परा के अनुसार सम्पन्न किया जाता है। यह विवाह वर एवं वधू पक्ष के रजामंदी से होता है, जिसमें दोनों पक्षों के परिवार के कुछ सदस्य ही शामिल होते हैं। यह विवाह किसी मंदिर में भी सम्पन्न कराया जा सकता है। जिसमें वह सारी रश्म पूरी की जाती है जो एक सामान्य विवाह में होता है। आदर्श विवाह में विवाह समारोह का आयोजन, रिश्तेदारों, परिचितों व समाज के लोगों को वस्त्र प्रदान नहीं किया जाता। इस विवाह में किसी भी प्रकार की उपहार नहीं दिया जाता। वधू पक्ष के द्वारा केवल अपनी बेटी की विदाई की जाती है। 



सामूहिक आदर्श विवाह के लिये प्रयास आवश्यक

प्रत्येक समाज एक सशक्त एवं संगठित है। समाज का एक अलग ही महत्व है। संगठित समाज में व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित पाता है, जिसके कारण अधिकांश परिवार समाज की प्रत्येक नियम, परम्परा, रीति-रिवाज को मानता है। ऐसे में समाज के पदाधिकारियों एवं प्रतिष्ठित नागरिकों को भी अपने समाज के उत्थान एवं विकास के लिये पहल करने की आवश्यकता है। आपका समाज तभी विकसित हो सकेगा, जब समाज के प्रत्येक परिवार व व्यक्ति शिक्षित, आत्मनिर्भर होकर मूलभूत सुविधा से वंचित न होकर ‘खुशहार जिन्दगी’ व्यतीत कर सकें और ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब उस परिवार के पास आय का साधन हो तथा परिवार के जीवन यापन के लायक वह धन की बचत कर सकें। यदि गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार विवाह समारोह का आयोजन करता है, तो उनका जीवन भर की सारी कमाई एक ही समारोह में समाप्त हो जाती है। जिसके पश्चात् उन्हें पुनः अपने जीवन यापन के लिये कसमोकस करना पड़ता है। यह घटना एक ही परिवार के साथ नहीं बल्कि समाज के अधिकांश परिवार के साथ घटित होता है। ऐसे में समाज को भी सामाजिक जनों की सुख, सुविधाओं एवं उन्नति के लिये प्रयास करना चाहिए। समाज को सामूहिक आदर्श विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। समाज के लोगों को अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह कम खर्च में कराने के लिए प्रेरित करना चाहिए। समाज द्वारा ऐसे समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए जहाॅ अधिक से अधिक युवक-युवतियों का एक ही स्थान पर विवाह सम्पन्न हो सके। यदि समाज के सभी वर्ग के लोग आदर्श विवाह करना प्रारंभ कर दिया तो निश्चित ही एक परिवार, समाज सहित देश की सम्पदा में वृद्धि होना प्रारंभ हो जायेगा। 

आदर्श विवाह के लिए उच्च वर्ग को आगे आने की आवश्यकता

मेरा मानना है कि उच्च वर्ग के विचारों, उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का अनुसरण निम्न एवं मध्यम वर्ग के परिवार करते हैं। यह ज्यादा देखने को मिलता है कि यदि एक उच्च वर्ग के विवाह समारोह में निम्न या मध्यम वर्ग के परिवार के कोई सदस्य सम्मिलित हो जाता है तो वह भी वहाॅ की व्यवस्था, सुविधा एवं शान-शौकत को देखकर अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह वैसे ही करने का विचार करता है। यदि कोई युवक, आर्थिक रूप से सम्पन्न अपने किसी दोस्त के शादी में शामिल होता है, तो वह भी उसी प्रकार विवाह करने का विचार बना लेता है। जिसके कारण उसके माता-पिता को अपने पुत्र की खुशी के लिए खर्चीली विवाह समारोह का आयोजन करना पड़ता है। ऐसे में उच्च वर्ग को अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह सादगी पूर्ण तरीके से कर विवाह में अनावश्यक खर्च होने वाली सम्पत्ति का उपयोग अपने संतानों, परिजनों व परिचितों के उज्जवल भविष्य को बनाने में करना चाहिए। उच्च वर्ग को अनावश्यक खर्च न कर आर्थिक रूप से कमजोर अपने सहकर्मियों, दोस्तों, परिजनों एवं कर्मचारियों के भविष्य को बनाने में बचत राशि का उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवार में यह भावना जागृत होगा कि जब आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति के द्वारा अपने पुत्र-पुत्रियों का आदर्श विवाह कराया जा सकता है तो हम भी आदर्श विवाह करायेंगे। जब कहीं सामाजिक समारोह होगा तो वहाँ इस विषय पर चर्चा प्रारंभ होगी। कहीं कोई मंचीय कार्यक्रम होगा तो वहाँ इस विषय पर संभाषण होंगे। समाज के सभी सक्षम जिम्मेदार लोगों में भी नई चेतना जागृत होगी। 

यह लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य यहीं है कि वर्तमान परिवेश को ध्यान में रखते हुए केवल व्यक्तिगत स्वार्थ को न देखकर समाज में रहने वाले सभी तबकों (अमीर-गरीब) में समानता का भाव लाया जा सके। लोकहित को सर्वोपरि मान आर्दश विवाह को स्वीकार कर इसका महत्व सभी तक पहुंचाया जा सके। एक ‘खुशहार जिन्दगी’ तभी सम्भव है, जब हम अपने आसपास रहने वालों को खुश देखेंगे। उनका उन्नति होता देखेंगे। जब आपके आसपास का वातावरण उदास रहेगा तो आप कैसे खुश रहे सकते हंै। उदाहरण के लिये आपके घर के पास एक दुर्गंध युक्त कोई वस्तु है जिससे अत्यंत दुर्गंध उठ रही है और उसे हटाने वाला कोई नहीं है, जब तक उसे आप स्वयं नहीं हटायेंगे, तब तक उससे दुर्गंध उठती रहेगी। इसी प्रकार जब तक आप स्वयं समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने सार्थक पहल नहीं करेंगे, तब तक हमारे समाज, गांव, प्रांत, देश का विकास नहीं हो सकता।