मंगलवार, 26 जनवरी 2021

विवाह में होने वाले फिजूल खर्च पर विचार आवश्यक


हिन्दुओं में विवाह एक प्रकार का संस्कार है, जो पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिये एक समान है। यहाँ विवाह को धार्मिक बंधन एवं कर्तव्य समझा

marriage
जाता है। विवाह का दूसरा अर्थ समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जाने वाला दाम्पत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी होता है। विवाह दो व्यक्तियों (स्त्री व पुरुष) के धार्मिक या कानूनी रूप से एक साथ रहने के लिये प्रदान की जाने वाली सामाजिक मान्यता है। यह मानव समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई परिवार का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाये रखने का प्रधान जीव शास्त्री माध्यम भी है। विवाह आजीवन चलने वाला संस्कार है। जिसमें पति-पत्नी का संबंध अटूट होता है। 

लगभग सभी समाजों में विवाह संस्कार कुछ विशिष्ट विधियों के साथ सम्पन्न किया जाता है, जो पति-पत्नी बनने की घोषणा करता है। संबंधियों को विवाह समारोह में बुलाकर उन्हें इस नवीन दाम्पत्य का साक्षी बनाया जाता है। धार्मिक विधियों द्वारा उसे कानूनी मान्यता और सामाजिक सहमति प्रदान की जाती है। विवाह की तैयारी में माता-पिता संतान के पैदा होते ही जुट जाते हैं। यदि परिवार सामर्थवान है तब तो बच्चों के विवाह में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन यदि परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है और यदि उनके यहाॅ बेटियों की संख्या अधिक है तो पालकों का सारा जीवन इस चिन्ता में व्यतीत हो जाता है कि मैं अपने बेटियों का विवाह कैसे करूं? इनकी शादियाॅ किस तरह से व कैसी होगी? समृद्धशाली लोग अपनी मर्जी से वर पक्ष को उपहार स्वरूप अधिक राशि या सामाग्री देकर समाज में अपनी हैसियत का उच्च प्रदर्शन करते है, जिससे उनका रूतबा बना रहें। उच्च वर्ग के इस प्रकार के दिखावटी प्रदर्शन विभिन्न वर्गों के बीच प्रतियोगिता का रूप भी ले लेता है। फिर किसी की बराबरी करने के लिये शादी समारोह में अपना भी रूतबा दिखाने हेतु आर्थिक रूप से कमजोर व मध्यम वर्गीय परिवार कर्जदार भी बन जाते हैं। ग्रामीण अंचल में विवाह में शामिल होने वाले समस्त रिश्तेदारों व परिजनों को कपड़े, साड़ी आदि देने की परम्परा है। गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार की कमर अपनी बेटियों के शादी करने में ही टूट जाती है तथा विवाह हेतु लिये गये कर्ज को पटाने अपनी बाकी जिन्दगी को भी दुश्वार कर देता है। 



शादी-विवाह समारोह में अधिक राशि को पानी की तरह बहाया जाता है। यह अनावश्यक खर्च फिजूल खर्ची की श्रेणी में ही गिना जाता है। वर्तमान में अधिक दान या उपहार देकर भी योग्य वर या वधू पाना दुष्कर है। मैं यह नहीं कह रहा है कि योग्य वर या वधू नहीं मिलेंगे। लेकिन योग्य वर या वधू का अर्थ तभी सार्थक हो सकता है जब दोनों (वर-वधू) मिलकर अपनी जिन्दगी को खुशहाल बनाये और जीवन भर एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देते रहें। यह विचार करने योग्य है कि क्या अधिक राशि या सामाग्री उपहार में देने से वर या वधू का जीवन सुखमय रहेगा। ऐसा नहीं है कई मामलों में अधिक राशि या सामाग्री उपहार देने के बावजूद भी दोनों (वर, वधू) कुछ दिन, कुछ माह या कुछ वर्ष एक साथ निवास करने के पश्चात् पृथक-पृथक रहने लग जाते हैं। ऐसे में आपके द्वारा अधिक उपहार देने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता है। कुछ नवजवानों की यह प्रबल इच्छा होती है कि वह अपने विवाह सेलिब्रेट करेंगे, आतिशबाजियाॅ करेंगे। ऐसे विचार को माॅ-बाप पूरा करने के लिये बच्चों की खुशी के लिये मजबूर हो जाते हैं। क्या यह विचार करने योग्य नहीं है कि हम अपने बच्चों के शादी में जितनी राशि खर्च कर रहे हैं, यदि उतनी राशि का उपयोग उनके स्वावलंबी बनने, जीवन निर्माण करने तथा भविष्य को सुनहरा बनाने में उपयोग करें तो ज्यादा सार्थक होगा?

फिजूल खर्च से बचने आदर्श विवाह एक विकल्प

क्या आप जानते हैं कि आपके द्वारा फिजूल खर्च किये जाने से स्वयं का धन ही नहीं अपितु देश की सम्पदा का भी व्यर्थ उपयोग होता है? वहीं बड़े-बड़े विवाह समारोह के आयोजन से बहुत सारी परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है। स्वयं एवं देश की सम्पदा को फिजूल खर्च से बचाने के लिये एक आसान तरीका है आदर्श विवाह’ हाॅ, आदर्श विवाह एक ऐसा विवाह है जिसमें आप कम खर्च में भी अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह कर सकते हैं। साथ ही विवाह की तैयारी में लगने वाले श्रम, समय सहित अन्य परेशानियों से भी छुटकारा पा सकते हैं। आदर्श विवाह वर-वधू के परिवारों की आपसी समझदारी, रजामंदी एवं सामंजस्य से सादगी पूर्ण तरीके से बिना दान-उपहार, बिना दिखावटीपन व कुछ ही समय में सम्पन्न कराया जा सकता है। इस विवाह का फायदा अनावश्यक खर्चों की बचत करना है। समाज में फैली कुरीतियाॅ जड़े जमायी हुई, जिनको न करने पर हमें कोई नुकसान नहीं होने वाला, फिर भी परम्परा को ध्यान में रखते हुए उनको जगह देते जाते हैं। उन कुरीतियों को समाप्त करने के लिये ‘आदर्श विवाह’ आवश्यक है। इस तरह आदर्श विवाह खर्चीली शादी, फिजूल खर्च, दहेज प्रथा व अनेक कुरीतियों या प्रथाओं को खत्म करने का सशक्त माध्यम है। 

क्या है आदर्श विवाह?

आदर्श विवाह आपके रीति रिवाज एवं परम्परा के अनुसार सम्पन्न किया जाता है। यह विवाह वर एवं वधू पक्ष के रजामंदी से होता है, जिसमें दोनों पक्षों के परिवार के कुछ सदस्य ही शामिल होते हैं। यह विवाह किसी मंदिर में भी सम्पन्न कराया जा सकता है। जिसमें वह सारी रश्म पूरी की जाती है जो एक सामान्य विवाह में होता है। आदर्श विवाह में विवाह समारोह का आयोजन, रिश्तेदारों, परिचितों व समाज के लोगों को वस्त्र प्रदान नहीं किया जाता। इस विवाह में किसी भी प्रकार की उपहार नहीं दिया जाता। वधू पक्ष के द्वारा केवल अपनी बेटी की विदाई की जाती है। 



सामूहिक आदर्श विवाह के लिये प्रयास आवश्यक

प्रत्येक समाज एक सशक्त एवं संगठित है। समाज का एक अलग ही महत्व है। संगठित समाज में व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित पाता है, जिसके कारण अधिकांश परिवार समाज की प्रत्येक नियम, परम्परा, रीति-रिवाज को मानता है। ऐसे में समाज के पदाधिकारियों एवं प्रतिष्ठित नागरिकों को भी अपने समाज के उत्थान एवं विकास के लिये पहल करने की आवश्यकता है। आपका समाज तभी विकसित हो सकेगा, जब समाज के प्रत्येक परिवार व व्यक्ति शिक्षित, आत्मनिर्भर होकर मूलभूत सुविधा से वंचित न होकर ‘खुशहार जिन्दगी’ व्यतीत कर सकें और ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब उस परिवार के पास आय का साधन हो तथा परिवार के जीवन यापन के लायक वह धन की बचत कर सकें। यदि गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार विवाह समारोह का आयोजन करता है, तो उनका जीवन भर की सारी कमाई एक ही समारोह में समाप्त हो जाती है। जिसके पश्चात् उन्हें पुनः अपने जीवन यापन के लिये कसमोकस करना पड़ता है। यह घटना एक ही परिवार के साथ नहीं बल्कि समाज के अधिकांश परिवार के साथ घटित होता है। ऐसे में समाज को भी सामाजिक जनों की सुख, सुविधाओं एवं उन्नति के लिये प्रयास करना चाहिए। समाज को सामूहिक आदर्श विवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। समाज के लोगों को अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह कम खर्च में कराने के लिए प्रेरित करना चाहिए। समाज द्वारा ऐसे समारोह का आयोजन किया जाना चाहिए जहाॅ अधिक से अधिक युवक-युवतियों का एक ही स्थान पर विवाह सम्पन्न हो सके। यदि समाज के सभी वर्ग के लोग आदर्श विवाह करना प्रारंभ कर दिया तो निश्चित ही एक परिवार, समाज सहित देश की सम्पदा में वृद्धि होना प्रारंभ हो जायेगा। 

आदर्श विवाह के लिए उच्च वर्ग को आगे आने की आवश्यकता

मेरा मानना है कि उच्च वर्ग के विचारों, उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों का अनुसरण निम्न एवं मध्यम वर्ग के परिवार करते हैं। यह ज्यादा देखने को मिलता है कि यदि एक उच्च वर्ग के विवाह समारोह में निम्न या मध्यम वर्ग के परिवार के कोई सदस्य सम्मिलित हो जाता है तो वह भी वहाॅ की व्यवस्था, सुविधा एवं शान-शौकत को देखकर अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह वैसे ही करने का विचार करता है। यदि कोई युवक, आर्थिक रूप से सम्पन्न अपने किसी दोस्त के शादी में शामिल होता है, तो वह भी उसी प्रकार विवाह करने का विचार बना लेता है। जिसके कारण उसके माता-पिता को अपने पुत्र की खुशी के लिए खर्चीली विवाह समारोह का आयोजन करना पड़ता है। ऐसे में उच्च वर्ग को अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह सादगी पूर्ण तरीके से कर विवाह में अनावश्यक खर्च होने वाली सम्पत्ति का उपयोग अपने संतानों, परिजनों व परिचितों के उज्जवल भविष्य को बनाने में करना चाहिए। उच्च वर्ग को अनावश्यक खर्च न कर आर्थिक रूप से कमजोर अपने सहकर्मियों, दोस्तों, परिजनों एवं कर्मचारियों के भविष्य को बनाने में बचत राशि का उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवार में यह भावना जागृत होगा कि जब आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति के द्वारा अपने पुत्र-पुत्रियों का आदर्श विवाह कराया जा सकता है तो हम भी आदर्श विवाह करायेंगे। जब कहीं सामाजिक समारोह होगा तो वहाँ इस विषय पर चर्चा प्रारंभ होगी। कहीं कोई मंचीय कार्यक्रम होगा तो वहाँ इस विषय पर संभाषण होंगे। समाज के सभी सक्षम जिम्मेदार लोगों में भी नई चेतना जागृत होगी। 

यह लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य यहीं है कि वर्तमान परिवेश को ध्यान में रखते हुए केवल व्यक्तिगत स्वार्थ को न देखकर समाज में रहने वाले सभी तबकों (अमीर-गरीब) में समानता का भाव लाया जा सके। लोकहित को सर्वोपरि मान आर्दश विवाह को स्वीकार कर इसका महत्व सभी तक पहुंचाया जा सके। एक ‘खुशहार जिन्दगी’ तभी सम्भव है, जब हम अपने आसपास रहने वालों को खुश देखेंगे। उनका उन्नति होता देखेंगे। जब आपके आसपास का वातावरण उदास रहेगा तो आप कैसे खुश रहे सकते हंै। उदाहरण के लिये आपके घर के पास एक दुर्गंध युक्त कोई वस्तु है जिससे अत्यंत दुर्गंध उठ रही है और उसे हटाने वाला कोई नहीं है, जब तक उसे आप स्वयं नहीं हटायेंगे, तब तक उससे दुर्गंध उठती रहेगी। इसी प्रकार जब तक आप स्वयं समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने सार्थक पहल नहीं करेंगे, तब तक हमारे समाज, गांव, प्रांत, देश का विकास नहीं हो सकता।